
धमतरी की साहित्यिक मिट्टी ने अनेक साहित्यिक मनीषियों को जन्म दिया है उन्हीं में से एक है त्रिभुवन पाण्डेय । जिनका जन्म 21 नवंबर 1938 को धमतरी में हुआ। सोरिद नगर, धमतरी उनका स्थायी निवास रहा। यह नगर जिसने उनकी रचनात्मक चेतना को आकार दिया आज भी उनके साहित्यिक अवदान की गवाही देता है।
त्रिभुवन पाण्डेय मूलतः एक व्यंग्यकार और गीतकार के रूप में साहित्य जगत में पहचाने जाते हैं। परंतु उनकी बहुआयामी प्रतिभा ने व्यंग्य, नाटक, कविता, समीक्षा और रिपोतार्ज तक अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की।
उनकी प्रमुख कृतियां साहित्यिक विविधता का परिचय कराती हैं । भगवान विष्णु की भारत यात्रा (व्यंग्य उपन्यास, विश्व पॉकेट बुक, दिल्ली), पम्पापुर की कथा (व्यंग्य संग्रह, श्री प्रकाशन, दुर्ग), झूठ जैसा सच (लघु उपन्यास), सुनो सूत्रधार (गीत संग्रह), पंछी मत हंसो (हास्य-व्यंग्य एकांकी नाटक),महाकवि तुलसी (जीवनी), ब्यूटी पार्लर में भालू (व्यंग्य संग्रह, लोकवाणी प्रकाशन, दिल्ली), कागज की नाव (गीत संग्रह), गाओ वन पांखी (गीत संग्रह) इनके अतिरिक्त समय-समय पर प्रकाशित व्यंग्य, नाटक, कविता, समीक्षा और रिपोर्ताज ने पाठकों के बीच उनकी साहित्यिक उपस्थिति को सुदृढ़ किया। विशेष उल्लेखनीय है ‘मोर्चा फीचर’ में प्रकाशित उनका साप्ताहिक व्यंग्य स्तंभ, जो पाठकों को झकझोरते हुए भी मुस्कान से भर देता था।
त्रिभुवन पाण्डेय का नाम उस समय और गौरवपूर्ण हो उठता है जब महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा द्वारा प्रकाशित भारत की जनपदीय कविता में छत्तीसगढ़ खंड का संपादन उन्हें सौंपा गया। यह उनकी विद्वता और छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य की गहन समझ का सम्मानजनक प्रमाण है।
साहित्य के इस अथक साधक को कई प्रतिष्ठित सम्मानों से अलंकृत किया गया जिसमें –
- स्मृति नारायण लाल परमार सम्मान – ( 2005 ) साहित्य संगीत सांस्कृतिक मंच मुजगहन,
- धमतरी , छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य सम्मेलन, रायपुर (1988),
- साहित्य भूषण अलंकरण – (2009) निराला साहित्य मंडल चांपा,
- गीत साधक सम्मान – जिला हिन्दी साहित्य समिति, दुर्ग
त्रिभुवन पाण्डेय को याद करना दरअसल उस दौर को याद करना है जब व्यंग्य मात्र हास्य का उपकरण नहीं था बल्कि समाज की विसंगतियों पर गहरी चोट करने का सशक्त माध्यम था। उनकी कलम ने ब्यूटी पार्लर में भालू जैसी रचनाओं से पाठकों को गुदगुदाया भी और सोचने पर मजबूर भी किया। उनके गीतों में प्रकृति की ममतामयी गोद और लोकजीवन की सरल संवेदनाएं रच-बस गई है। कागज की नाव और गाओ वन पांखी जैसे गीत संग्रह इसका प्रमाण है। वही गीत जब मंच पर गूंजते तो श्रोताओं को एक अलग ही आत्मीयता का अनुभव होता।
पाण्डेय जी का व्यक्तित्व उतना ही सहज और आत्मीय था जितना उनकी रचनाएं। वे धमतरी की सांस्कृतिक चेतना के लिए एक प्रेरणा-स्रोत रहे हैं। उनका साहित्य हमें यह सिखाता है कि व्यंग्य केवल कटाक्ष नहीं, बल्कि सुधार की दिशा में एक रचनात्मक हस्तक्षेप है और गीत केवल भावनाओं का विसर्जन नहीं, बल्कि लोकजीवन का प्राण-स्वर है। छत्तीसगढ़ की साहित्यिक दुनिया ने अपने एक सशक्त हस्ताक्षर, प्रखर रचनाकार और संवेदनशील साहित्यकार त्रिभुवन पाण्डेय का अवसान 05 मार्च 2021 को हुआ।
– डुमन लाल ध्रुव
मुजगहन धमतरी (छग)





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