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आशा और नवजीवन का संचार शरद ऋतु-डुमन लाल ध्रुव

आशा और नवजीवन का संचार शरद ऋतु-डुमन लाल ध्रुव


भारतीय ऋतु-चक्र अपनी विविधता और लयात्मकता के कारण विश्व में अद्वितीय माना जाता है। यहां की छह ऋतुएं वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर सिर्फ मौसम का ही नहीं बल्कि जीवन, संस्कृति और परंपराओं का भी प्रतिबिंब है। इनमें से शरद ऋतु को विशेष महत्व प्राप्त है। जब वर्षा की भीषणता समाप्त होती है और आकाश निर्मल होकर उज्ज्वल दिखाई देता है तब प्रकृति अपने सौंदर्य का अद्भुत रूप प्रस्तुत करती है। इसी संदर्भ में कवि लिखते हैं- “वर्षा विगद शरद ऋतु आई”। यह ऋतु न केवल प्राकृतिक शांति का संदेश देती है बल्कि सामाजिक और धार्मिक आयोजनों का भी केन्द्र बन जाती है। शरद ऋतु का सबसे प्रमुख सांस्कृतिक उत्सव है शरदोत्सव जिसमें खीर खाने की परंपरा विशेष महत्व रखती है।


शरद ऋतु भारतीय पंचांग के अनुसार आश्विन और कार्तिक मास में आती है। वर्षा समाप्त होने के बाद वातावरण शुद्ध और स्वच्छ हो जाता है। आकाश में नीलिमा छा जाती है, बादलों की धुंध हट जाती है और चांदनी रातें स्वर्णिम आभा बिखेरती हैं। जलाशयों का जल निर्मल हो जाता है।

कमल खिलकर सरोवरों को शोभित करते हैं। धान की बालियां सुनहरी होकर पकने लगती हैं। हल्की-हल्की शीतल बयार मन को प्रफुल्लित करती है। इसी ऋतु को संस्कृत काव्य में “प्रकृति का स्वर्णिम श्रृंगार” कहा गया है। कालिदास ने ऋतुसंहार में शरद ऋतु की छटा का अद्भुत वर्णन करते हुए लिखा है कि इस ऋतु में चंद्रमा अपनी पूर्णिमा में विशेष आकर्षक लगता है और रात्रि का सौंदर्य अनुपम हो उठता है।

भारतीय परंपरा में शरद ऋतु धार्मिक उत्सवों की ऋतु कही जाती है। शरद ऋतु का प्रारंभ नवरात्रि पर्व से होता है। मां दुर्गा की आराधना इसी ऋतु में होती है और असुर शक्तियों पर विजय की गाथा रची जाती है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और अमृत वर्षा करता है। मान्यता है कि चंद्रकिरणों में औषधीय गुण समाहित रहते हैं इसलिए इस दिन खीर बनाकर उसे चांदनी में रखकर खाने की परंपरा है। इसे अमृत खीर कहा जाता है। कृष्ण-रास उत्सव – भागवत पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात गोपियों के साथ महारास रचाया था। यह घटना शरद ऋतु की सांस्कृतिक और धार्मिक गरिमा को और गहरा करती है।

शरदोत्सव भारतीय समाज का प्रमुख सांस्कृतिक पर्व है। इस दिन लोग खीर बनाते हैं और चांदनी में रखकर उसका सेवन करते हैं। खीर शुद्धता, समृद्धि और मंगल का प्रतीक है। चावल, दूध और शक्कर का संयोग समग्रता, सौम्यता और मधुरता का द्योतक माना जाता है। वर्षा ऋतु के बाद शरीर में अनेक प्रकार के संक्रमण पनपते हैं। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणें शरीर को शीतलता और ऊर्जा प्रदान करती है। दूध और चावल जैसे पौष्टिक पदार्थ चांदनी में रखने से उनमें औषधीय गुणों का संचार होता है। यही कारण है कि इस रात की खीर को विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है। ग्रामीण समाज में यह विश्वास गहराई से जुड़ा है कि शरद पूर्णिमा की रात खीर खाने से तन-मन स्वस्थ रहता है और जीवन में समृद्धि आती है।

हर युग में शरद ऋतु का महत्व अलग-अलग रूपों में व्यक्त होता रहा है। प्राचीन काल में इसे धार्मिक अनुष्ठानों की ऋतु माना गया। ऋग्वेद और अथर्ववेद में शरद के महत्व का वर्णन मिलता है।
मध्यकाल में – कवियों ने शरद की चंद्रमा शीतलता को प्रेम और भक्ति की अभिव्यक्ति के रूप में देखा। सूरदास, रसखान और जयदेव के पदों में इसका सुंदर वर्णन है।

आधुनिक काल में – शरद ऋतु को सांस्कृतिक समन्वय और लोक-उत्सवों का माध्यम माना जाने लगा है। ग्रामीण मेलों, रामलीला और नवरात्रि की धूम-धाम इसी ऋतु में होती है।
भारतीय साहित्य में शरद ऋतु को ‘काव्य ऋतु’ कहा गया है। कवियों ने इसके सौंदर्य को रूपक, उपमा और प्रतीक के माध्यम से व्यक्त किया है। कालिदास ने शरद की चांदनी को प्रेमिका के मुख से तुलना की। जयदेव के गीतगोविंद में शरद की पूर्णिमा को कृष्ण-रास का पृष्ठभूमि बनाया गया। हिंदी के आधुनिक कवि सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा ने शरद की शांति और सौंदर्य को मानव जीवन के साथ जोड़ा।

शरद ऋतु हमें यह संदेश देती है कि वर्षा की कठिनाइयों और जीवन के संकटों के बाद भी शांति और सौंदर्य संभव है। यह आशा और नवजीवन की ऋतु है। खीर खाने की परंपरा केवल आहार का नहीं बल्कि आस्था, स्वास्थ्य और समन्वय का प्रतीक है।

– डुमन लाल ध्रुव
मुजगहन,धमतरी (छ.ग.)
पिन – 493773

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