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अभिलाषा पाण्डेय का देशभक्ति गीत: “जब पाखंडों की आंधी अंधियार बढ़ाने लगते हैं”।

अभिलाषा पाण्डेय का देशभक्ति गीत: “जब पाखंडों की आंधी अंधियार बढ़ाने लगते हैं”।

(1)

जब पाखंडो की आंधी अंधियार बढ़ाने लगते है
जब अपने ही षड्यंत्रों के जाल बिछाने लगते है

जब सिंहासन और सत्ता की भूख अधिक बढ़ जाती है
जब सहज स्वार्थ की खातिर माँ ही छन्नी कर दी जाती है

तब भारत माँ की संतानों को हथियार उठाना पड़ता है
राष्ट्र धर्म की रक्षा हेतु लहू बहाना पड़ता है

वीर सपूतो की गाथा को कविता से दोहराएँगे
वंदे मातरम् वंदे मातरम् वंदे मातरम् गाएँगें

भगत सिंह ने फांसी चूमी और फंदे पर झूल गया
आजादी की दुल्हन संग वह सातो भाँवर घूम गया

चंद्रशेखर आजाद एक वो अलबेला दीवाना था
खुद को गोली मार गया आजादी का परवाना था

सुनो कहानी अंग्रेजो को धूल चटाने वाली झाँसी रानी की
देश धर्म का पाठ पढ़ाने वाली पन्ना बलिदानी की

वीर सपूतो की गाथा को कविता से दोहराएँगे
वंदे मातरम् वंदे मातरम् वंदे मातरम् गाएँगें

भारत माँ के रखवालो की भारत भू में कमी नहीं
भारतवासी हो कायर ऐसा तो कभी हुआ नहीं

सुनो राष्ट्र की संतानो रणचंडी का आह्वान करो
भारत माँ के रिपुदल का भुजदंडो से संधान करो

विश्व पटल पर फिर भारत के परचम को लहराना है
देश की खातिर जीना है और देश पे ही मर जाना है

वीर सपूतो की गाथा को कविता से दोहराएँगे
वंदे मातरम् वंदे मातरम् वंदे मातरम् गाएँगें

(2)

राष्ट्र धर्म पर संकट आता तब कविता तन जाती है
कलम थाम कर लोहा लेती दुश्मन से अड़ जाती है

वीर प्रसूता भारत मांँ की मान बढ़ाती है कविता
तुलसी की मानस में आकर राम को गाती है कविता

केशव की कविता गीता बन पार्थ जगाया करती है
भटके हुए शूर वीरों को मार्ग दिखाया करती है

कभी कभी कविता मुझको तलवार दिखाई देती है

और वतन की रक्षा हेतु ढाल दिखाई देती है

मीरा बाई के भजनो में प्रेम सुधा बरसाती है
और चंद्रवरदाई से गोरी का वध करवाती है

उल्टा नाम का जाप किया मरा मरा फिर राम हुआ
वाल्मीकि से कविता उपजी रामायण सुख धाम हुआ

पीर अधिक बढ़ जाता है तब पैदा होती है कविता
मर्यादा पर संकट छाता है तब पैदा होती है कविता

कभी कभी कविता मुझको तलवार दिखाई देती है

और वतन की रक्षा हेतु ढाल दिखाई देती है

राजमहल में दरबारों के आगे न झूक पाएंगी
षड्यंत्रों के अंधियारों से कभी नहीं रुक पाएंगी

मर्यादा के मान की खातिर दूत शांति बन जाती है

शत्रुदल यदि आंख तरेरे तब क्रांति कहलाती है

सुर कबीर तुलसी मीरा रसखान कभी तो आएंगें

इतिहासों के पृष्ठों को जन जन तक फिर पहुंचाएंगें

कभी कभी कविता मुझको तलवार दिखाई देती है

और वतन की रक्षा हेतु ढाल दिखाई देती है

(3)

जो श्वासों को स्वाहा करते देश पे मर मिट जाते हैं
मातृभूमि की रक्षा हेतु अपनी जान लूटाते है

उनकी छाती चौड़ी है वो सिंघ गर्जना वाले हैं
हर बम से हर हर बम बम का उत्तर देने वाले है

प्राणों का जिन्हें मोह नहीं बलि बेदी पर चढ़ जाते हैं
दुश्मन के सीने पर भारत का झंडा लहराते हैं

भारत की माटी चंदन है माथे पर उसे सजाते हैं
सीमा के पहरी जवान ही तो सैनिक कहलाते हैं

उनकी बाहों में आयुध सीने पर गोली खाते हैं
सीने पर गोली खाते हैं कभी पीठ नहीं दिखलाते हैं

वो अपनी मां के बेटे हैं बाबा के राज दुलारे हैं
भाई हैं वो किसी बहन के पत्नी के प्राणन प्यारे हैं

भारत माता के बेटे से रिपुदल सारे हारे हैं
वीर सपूत वो भारत मां के दुश्मन को संहारे हैं

भारत की माटी चंदन है माथे पर उसे स….

वो पर्वत की तरह अडिग हैं अटल है वो ध्रुव तारे सा
शीतल है वो शशि सरीखे और दग्ध सूरज जैसा

जो धरती पर गिरते हैं तो अंबर तक छा जाते हैं
वो अजर अमर हो जाते हैं जब शहीद कहलाते हैं

जो अपने छोटे जीवन में किरदार बड़ा कर जाते हैं
कुल का माथा खुद का गौरव राष्ट्र बड़ा कर जाते है

भारत की माटी…..

अभिलाष पण्डे, मुगेली

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