
(१)
भाई मैं हर आँव जी, मात्र मेटरिक पास।
बुद्धि मोर तिर जान लौ, नइये कउनो खास।।
नइये कउनो खास, तभे कुछ नइ लिख पावँव।
रहिथौं निचट उदास, कहाँ काकर तिर जावँव।।
सुनहीं मोर पुकार, कथौं विद्या के दाई।
लिखहौं आखर चार, कृपा पा के गा भाई।।
(२)
दाई के महिमा
दाई के महिमा इहाँ, भले मढ़ावत जाव।
सेवा ओकर ओतके, घर मा घलो बजाव।।
घर मा घलो बजाव, करौ झन आना कानी।
दिन गिनती के चार, पाय रहिथे जिनगानी।।
हँसी खुशी मिल बाँट, फर्ज हम अपन निभाई।
मन मा लेवन ठान, ‘कांत’ सुख पावै दाई।।
(३)
करू दवाई
करू दवाई ला कभू, चाबे सकॅंय न जान।
सोझे ओला लीलथें, मूॅंदत ऑंखीपॉंच कान।।
मूॅंदत ऑंखी कान, करूपन नई जनावय।
गुन ओकर तॅंय मान, ‘कांत’ वो रोग भगावय।।
बनिहौ तभे महान, लीलना सीखौ भाई।
असफलता अपमान, मान के करू दवाई।।
(४)
गुस्सा
खउलत पानी मा कभू, दिखय न अपने चित्र।
गुस्सा मा जी ओइसने, सुध बुध खोथन मित्र।।
सुध बुध खोथन मित्र, अल्हन अड़बड़ कर जाथन।
खउलावत हम खून, अपन फोकट अंउटाथन।।
काम क्रोध मद लोभ, बॉंध झन मन घानी मा।
दिखय न अपने चित्र, ‘कांत’ खउलत पानी मा।।
(५)
कोरोना
नगर बिहावत हे बने, दुलहा ए दमदार।
देवत हावय नेवता, सबला झाराझार।।
सबला झाराझार, बलावत हावय एहा।
जाए के जी फेर, कभू ठेका झन लेहा।।
बला बला के प्रान, लेत जावत बिटवावत।
कोरोना ए ‘कांत’, दूलहा नगर बिहावत।।
होके बलसाली कथें, लहुटे हे जी बाय।
नो है दूसर जान लौ, वो कोरोना ताय।।
वो कोरोना ताय, आय जँउहर अतलंगी।
जम के घर पँहुचाय, कथें तुरते गा संगी।।
घूमब हम बइहाय, ‘कांत’ उन कतको टोके।
हवय सउख चर्राय, मरे बर जी खुद होके।।
हॅंसव हॅंसावौ बने बड़े बड़े कवि मन,
देख देश हाल चाल सबो हलकान हे।
हाड़ा टोर जॉंगर पेरय माई दिन रात,
मंद पी के मरद हा परे गा उतान हे।।
राज सुख पाए बर सत्ता हथियाए बर,
बॉंटत कंबल दारू, रुपिया मितान हे।
खुले हे दुकान जघा जघा जी सियान,
जहॉं बिकथे ईमान काला परत जियान हे।।
@सर्वाधिकार सुरक्षित
सूर्यकांत गुप्ता, जुनवानी भिलाई (छत्तीसगढ़)






Leave a Reply