
जन्मभूमि है माँ हमारी
1)जन्मभूमि है माँ हमारी
इसको तुम प्रणाम कहो
इस जग मे जन्मे हर नारी का
दिल से तुम सम्मान करो
1)यह महाभारत की वाणी है,
पांचाली की कहानी है
दरबार मे बैठे दुष्टो से,
द्रोपती की लाज बचानी है
कौरव ने ऐसा खेल रचा
अभला को जीता जाता है,
जब दासी बनाके स्त्री के
केशो को खींचा जाता है
जब भरी सभा बेचारी के
साड़ी को घसीटा जाता है
उसी समय उन दुष्टो का
सर्वनाश तय हो जाता है
बहन की लाज बचाने वाले
तुम परम कृष्ण भगवान बनो
इस जग……………
2)जब रावण छल कपट करने
साधु का भेष धरता है
धरती भी कंपित हो उठता
सीता का हाथ पकड़ता है
रुदन को सुन हसने वाले
कर नारी का अपमान नहीं
पतिव्रत सती सावित्री की
शक्ति का तुझे अनुमान नहीं
सीता को हर ले आया तब
माथे का सिंदूर दिखा नहीं
जो रमणी का अपमान करें
वो मानव आज तक टिका नहीं
नारी की रक्षा करने को
बन जाओ जटायु युद्ध लड़ो
इस जग मे…………
3)औरत को तुच्छ समझ करके
घूँघरू को बांधा जाता है
कठपुतली बना मतवालों के
समक्ष नचाया जाता है
जब नीच अधर्मी पापी गण
कुदृष्टि से देखा करते है
औरत की मान प्रतिष्ठा पर
नोटों को फेका करते है
जब दुराचार की काली घटा
उसके सर पर छा जाती है
तब अपनी लाज बचाने को
दुर्गा चंडी बन आती है
अपनी जननी भगिनी सम
उस बेटी को भी तुम समझो
इस जग मे जन्मे………….
सरयू के तीरे बसी नगरी अयोध्या
सरयू के तीरे बसी नगरी अयोध्या
सरयू के तीरे…..2
जहाँ राम जी रहे है जहाँ माँ सिया रही है बड़ा पावन है पावन है…..
सरयू के तीरे बसी नगरी अयोध्या सरयू के तीरे……. 2
1) दशरथ के थे राज दुलारे,
राम थे साँसों की डोर हो
माताओ के आँखो के तारे
भाई के लिए भोर हो..
आज्ञाकारी बनकर रघुवर
सिय संग चले वन ओर हो….
राम जी पग पाके शिला बनी अहिल्या
जहाँ राम जी रहे है जहाँ माँ सिया रही है
बड़ा पावन है……
सरयू के तीरे बसी नगरी अयोध्या
सरयू के तीरे……
2)गंगा नदी तट बैठे है रामा
केवट धोये पाँव हो
भागरती पार करें रघुवंशी
भक्तन खैवे नाव हो
हय से अपने प्रभु ने लगाकर
करदी दया की छाव हो
राम के पग पाके केवट हुए धन्या
जहाँ राम जी रहे है जहाँ माँ सिया रही है बड़ा पावन है…..
सरयू के तीरे बसी नगरी अयोध्या सरयू के तीरे…….
3)चलते चलते पहुंचे थे कुटिया
शबरी के गृह द्वार हो
जूठे बेर को खाये थे प्रेम से,
रघुवर श्री अवतार हो
खुशियों से भर गई शबरी माता
जाये भव से पार हो
सरयू के तीरे……….
राम के सिर सजी ताज़ है जानकी
राम के सिर सजी ताज़ है जानकी
धर्म के जीत का राज़ है जानकी
मातृ धरती जिसे, गोद मे ले गई
उस धरा भाग की लाज है जानकी
भक्त हनुमान को राम कारज मिला
राम द्वारा दिए काज है जानकी
वाटिका पुष्प से खूब सजी है मगर
बाग की वास्तविक साज है जानकी
नित्य देती परीक्षा सिया अग्नि की
दोष मय क्यों खड़ी आज है जानकी





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