
डॉ. परदेशी राम वर्मा एक प्रमुख हिंदी और छत्तीसगढ़ी साहित्यकार हैं, जिनका जन्म 18 जुलाई 1947 को हुआ था। उन्होंने कथा संग्रह, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण, बाल साहित्य और शोध प्रबंध जैसी विभिन्न विधाओं में 36 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। उन्हें पं. सुंदरलाल शर्मा राज्य अलंकरण-2013 और पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से डी.लिट् की उपाधि से सम्मानित किया गया है।
- डॉ. परदेशी राम वर्मा की कहानियाँ छत्तीसगढ़ के जनजीवन, संघर्ष और अन्य विशेषताओं का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे वे समकालीन समाज का आईना बनती हैं।
- उन्होंने हिंदी और छत्तीसगढ़ी में लेखन करके पूरे देश में पहचान बनाई है।
- उन्होंने कथा संग्रह, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण, बाल-काव्य संग्रह, नाटक, बाल-कथा संग्रह, छत्तीसगढ़ी लोककथाएँ, और छत्तीसगढ़ पर केंद्रित वैचारिक पुस्तकें लिखी हैं।
- उनके कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं: आठ कथा-संग्रह, तीन उपन्यास, छह नवसाक्षर साहित्य की पुस्तकें, दस संस्मरण, एक नाटक, एक बाल-काव्य-संग्रह और दो जीवनी।
- पंडित सुंदरलाल शर्मा राज्य अलंकरण (2013): छत्तीसगढ़ का सर्वोच्च राज्य साहित्य सम्मान।
- डी.लिट् की उपाधि: 2003 में पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से प्रदान की गई।
- माधवराव सप्रे अवार्ड (1999): देवदास बंजारे की जीवनी ‘आरुगफूल’ के लिए प्राप्त किया।
- राष्ट्रीय लोकभाषा सम्मान: 2025 में प्राप्त हुआ।
- साकेत संत सम्मान: 2019 में प्राप्त हुआ।
कहानी:रास्ता ही रास्ता
मैना नही जानती की उसे कहाँ उतरना है । मैना में सवार लोग भी नहीं जानते कि मैना कहां उतरेगी । जहां खुला मैदान दिखता है वहां अचानक मैना उतर जाती है ।
छत्तीसगढ़ के जंगलों में बोलने वाली मैना तो अब लुप्त सी हो रही है मगर आसमान में उड़ने वाली लोहे की मैना रोज गर्मी के दिनों में घरघराती है । छत्तीसगढ़ शासन ने अपने हेलीकाप्टर का नाम मैना रखा है ।
मैना इन दिनों जंगली गांवों के ऊपर ज्यादा उड़ती है । कभी कभी सलवा जुड़ुम के लिए जुट आये आदिवासियों के ऊपर से मैना उड़ जाती है । आदिवासी पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसी हवाबाजी देख रहे हैं । उन्हें आज भी कुछ समझ में नहीं आता कि जंगल के भीतर ऊंघते से अपने छोटे से गांव में वे कब जा पायेंगे । वे केम्पों में धांद तिये गये हैं । सड़क किनारे सत्रह केम्प बने हैं । अपने गांव के लोगों के साथ केम्प में बल्दू गोंड़ भी आ गया है । बल्दू साठ साल का है । पढ़ा लिखा है । उसने कुछ दिन फौज में भी नौकरी की है । मेट्रिक पास करने के बाद बल्दू फौज में नौकरी लग गया । उन्हीं दिनों राजा प्रवीरचंद भंजदेव के आह्वान पर आदिवासी लामबंद हो रहे थे । बल्दू अपने गांव में कभी कभार छुट्टी में आता और अपने मितान अंकालू कोटवार के साथ बैठकर सभी जानकारी लेता । आजकल बल्दू और अंकालू दोनों केम्पों में है ।
लेकिन पुरानी यादों के सहारे वे दोनों केम्प में भी सरस जीवन काट लेते हैं । खासकर जब मैना केम्प के ऊपर से उड़ती है तो बल्दू अपने पुराने दिनों के अनुभवों की किताब अंकालू और दीगर आदिवासियों के बीच खोल बैठता है ।
बल्दू कम फितरती नहीं है । छुटपन से उसे भरपूर उपर उठने का अवसर मिला । बल्दू के चाचा राजहरा में काम करते थे । बल्दू को वहीं पढ़ने का अवसर लगा । यहीं उसे कहानी कविता लिखने का चस्का लगा । हर हाल में बल्दू की कलम चली है । इसीलिए तो बल्दू अतराप के गांवों में सबसे अधिक पढ़ा लिखा समझदार जवान कहलाता था । जवान तो वह साठ बरस की उम्र में भी है । कसा शरीर, चौड़ी छाती, घुंधराले बाल और मजबूत हाथ पांव । वह आज भी चश्मा नहीं पहनता । जीवन की हर लड़ाई लड़ता बल्दू लगातार लिखता भी रहा । अब तो खैर काफी नाम कमा लिया है उसने । उसे वह एक प्रसंग कभी भूलता नहीं । तब द्वारिका प्रसाद मिश्रा मुख्यमंत्री थे । उनकी ठन गई साजा भंजदेव के साथ । तब पढ़कर स्कूल से निकला ही था बल्दू । खूब नंबर मिले थे उसे मैट्रिक में । दो बरस पहले ही जगदलपुर के महल में खून की होली खेली गई थी । बल्दू को गहरा आघात लगा था । उसने यह भी सुना कि डॉ.खूबचंद बघेल ने गोली कांड का विरोध किया था । तब मुख्यचमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्र ने धमकाकर उन्हें कहा था कि बघेल तुम मिटा दिये जाओगे । पर वाह रे छत्तीसगढ़ के सपूत डॉ.खूबचंद बघेल बल्दू डॉ. बघेल के ऐतिहासिक जवाब को कभी भूल नहीं सका । डॉ. साहब ने कहा मिसरा जी आप सब्र कर सकते हैं लेकिन मुझसे मेरी गरीबी नहीं छीन सकते । शायद छत्तीसगढ़ के आदिवासी भी इस जवाब को अपना जवाब समझने लगें । इसीलिए लगातार वे शासन से कटते गए और धीरे धीरे उनकी टूटन का लाभ लेकर नक्सलाइट जंगली गांवों में पैर पसारते गये ।
बल्दू तब भी शोषण का विरोध करता था । आग उगलती कहानियों का लेखन भी उसने इन्हीं दिनो शुरू किए । उसकी कहानियां खूब छपने भी लगीं । बल्दू गांव भर में अकेला फौजी सिपाही था । वह छुट् टी में गांव आया था । गांव के घोटुल में लड़के लड़की गीत गा रहे थे कि एक सरकारी जीप आकर वहां रूकी ।
बल्दू का दोस्त अंकालू कोटवार हाथ में पचहत्थी लाठी लेकर जा पहुंचा जीप में आये साहबानों के पास । देखा तो तहसीलदार साहब के साथ एक नौजवान डढ़ियल मानुष बैठा था । अंकालू को पास बुलाकर तहसीलदार ने कहा –
ये साहब नजदीक के रेस्ट हाऊस में रूके हैं । बड़े पत्रकार हैं । बस्तर के बारे में लिखने आये हैं । इनके लिए खाना बनाना है । दो सुन्दर लड़की गांव से हमें दो । रात भर के लिए ।
अंकालू का हाथ पचहत्था भाले वाली लाठी पर कस गई । हव साहब4कहते हूए वह गांव की ओर चल पड़ा । थोड़ी देर में ही बल्दू के साथ अंकालू जीप के पास आ खड़ा हुआ । जंगल की रात । रोशनी के दो हण्डों की तरह जीप की हेडलाइट जल रही थी । भीतर दो लोग बैठे थे, अंधेरे में । घात लगाकर बैठे भेड़िए की तरह । अंकालू के साथ आये नवजवान को देखकर ही तहसीलदार भांप गया कि हो न हो यह सिपाही ही हो । हेयर कटिंग से ही तहसीलदार अनुमान लगा चुका था । तहसीलदार कुछ कहता कि बल्दू ने ही कह दिया –
साहब, इनके लिए खाना बनाने अपनी बाई को भेज दीजिए । हमारे गांव की लड़की ऐसा काम नहीं करती ।
तहसीलदार ने कहा – साले, अपनी हैसियत में रह । बंद करा दूंगा हरामी ।
शायद तहसीलदार कुछ और कहता कि बल्दू अपने तीन चार साथियों के साथ जीप की ओर लपका । तहसीलदार गाड़ी स्टार्ट कर भाग निकला । बल्दू ने अंकालू से कहा, देखो मितान, यह साला तहसीलदार तुम्हें और मुझे तंग करेगा । लेकिन हिम्मत मत हारना ।
तीन दिन बाद गांव में थानेदार आ पंहुचा । उसने अंकालू को तलब किया । अंकालू को गुंड़ी में बुलाकर सब लोगों के बीच थानेदार ने कहा – साले, इज्जतदार बनते हो । साहब लोगों से पंगा लेते हो ।
अभी वह कुछ और कहता कि बल्दू वहां आ पहुंचा । बल्दू ने थानेदार से कहा – गाली मत दो, ढंग से बात करो ।
उसका इतना कहना था कि थानेदार ने डंडे से उसे पीटना शुरू कर दिया । बल्दू को दो तीन डंडे ही पड़े थे कि अंकालू ने भाले से थानेदार की जांघ में छेद कर दिया । उसके बाद तो उसके गांव में पुलिस की चौकी ही खुल गई । दोनों रातों-रात गांव से भाग गये । बल्दू फौज की नोकरी में नहीं गया बल्कि जंगल में ही छुपा रहा । अंकालू भी उसी के साथ भटकता रहा ।
एक रात दोनों गांव में आये । उनके घरवालों ने रो रो कर बताया कि पुलिस उनको रोज सताती है । जीना मुश्किल हो गया है । बल्दू ने कहा, अब नहीं सतायेगी । बस दो एक दिन में हिसाब हो जायेगा ।
बल्दू के घर वाले उसके बदले हुए तेवर को देखकर कुछ अकबका से गए मगर यह सोचकर रह गए कि बल्दू तो शुरु से ही फितरती है, कुछ उपाय सोच ही रहा होगा ।
इस बीच उसके रेजीमेंट से उसे पकड़ लाने का वारंट भी निकल गया । पुलिस बार बार घर आकर पूछती कि बल्दू को हाजिर करो वर्ना तुम लोगों को मार पड़ती ही रहेगी । बल्दू का बाप कलपता रह जाता मगर पुलिस के जवान नहीं पसीजते । रोज ब रोज की पिटाई से अधमरा बाप अब रोता भी नहीं था । बल्दू के घर उस दिन भी पुलिस वाले आ तो गये मगर वापस न जा सके । गांव के बाहर दोनों ठोलों को बल्दू और अंकालू के साथियों ने पीट पीट कर मार दिया ।
दोनों पुलिस वालों की लाश को गांव के बाहर खड़े बड़े पीपल के पेड़ में बल्दू ने टंगवा दिया और लिखवा दिया —
जंगलराज चलाने वाले चेत गये होते
तो क्यों फिर बल्दू नक्सल बनता,
अंकालू ललियाता,
रामू, चमरू को जंगल में
सुख से रहने देते,
शायदी ही कोई फिर बढ़कर
झण्डा लाल उठाता,
…… कवि कामरेड बल्दू
इस कविता की खूब चर्चा हुई । रायपुर के अखबारों में लगातार यह कविता छपती रही । कामरेड बल्दू के बारे में काल्पनिक कहानियां भी छपीं । डेस्क पर ही सभी समाचार अण्वेषित कर लेने वाले चमत्कारिक पत्रकारों ने लिखा कि बल्दू गोड़ फौजी था । उसकी एक प्रेमिका थी । तहसीलदार ने उसकी प्रेमिका का अपहरण कर लिया इसलिए वह नक्सलाइट बन गया ।
अंकालू गांव का सीधा साधा कोटवार था । वह भी अत्याचार सहन न कर सका और झंडा थाम बैठा । एक समाचार पत्र ने लिखा कि अब उस क्षेत्र में बल्दू ही प्रमुख बन गया है । छत्तीसगढ़ के साथियों को आंध्रा के नक्सली ट्रेनिंग दे रहे हैं और बड़ी जिम्मेदारी दे रहे हैं ।
एक कलम के उस्ताद ने लिखा कि वह स्वयं जंगल में जाकर बल्दू और साथियों से मिल आया है । बल्दू की कवितायें खूब लोकप्रिय हो रही हैं । वह नाच नाच कर खंजरी पर कविताओं का गायन करता है । कविताओं में वह बताता है कि राजा भंजदेव को मारने वाले सफेद पोशों को अब कुचल दो । जंगल वालो जागो । या तो स्वाभिमान से जियो या फिर मर जाओ ।
बल्दू और अंकालू धीरे धीरे खूब नामी हो गये । छत्तीसगढ़ राज्य बनने की सुगबुगाहट शुरू हुई तो जंगल में मार काट भी थोड़ी थमी । छत्तीसगढ़ राज्य बन गया । अजीत जोगी ने कई प्रयोग किये । उसमें से एक प्रयोग फसल चर्क परिवर्तन का था । एक जंगली गांव में जाकर एक आदिवासी मंत्री अपने साथियों के साथ भाषण दे रहा था । वह समझा रहा था कि एक फसल से कुछ नहीं होगा बरसात में यह लगाओ, ठंड में वह लगाओ और गर्मी में फिर यह लगाओ । भाषण चल ही रहा था कि सभा में एक अधेड़ सा वनवासी उठ खड़ा हुआ । उसने पूछा – 3बारहों महीना हम फसल लगाते काटते रहेंगे तब करमा कब नाचेंगे ?
मंत्री ने भर नजर उस आदिवासी को देखा । प्रश्नकर्ता ने कहा – नौटंकी बंद करो और चले जाओ वर्ना ठीक नहीं होगा । जंगल को जंगल रहने दो । भ्रम मत फैलाओ । हमारी चिंता अगर ढंग से तुम लोग ही कर लेते तो बेड़ा पार हो जाता । क्या करें, हमें तो हमारा अपना भी ठगता है और ठग्गू लोग तो खैर ठगते ही हैं ।
उसकी बात सुन-सुनाकर बीच सभा से उठकर मंत्री वापस राजधानी आ गया । दूसरे दिन सभी समाचार पत्रों में उस प्रश्नकर्ता का चित्र छपा तब लोगों ने जाना कि वही बल्दू था । चित्र में उसी के पास अंकालू भी बैठा दिख रहा था । सभा में लगभग तीन सौ नक्सली घेरा किये बैठे थे, ऐसा पेपर वालों ने लिखा ।
*** ***
फिर सरकार बदन गई । और मैना फिर जंगली गांवों के ऊपर उड़ने लगी । गांव के लोगों ने दल बनाकर नक्सलियों का विरोध शुरू कर दिया । बल्दू ने सरकार के पास अपने साथियों के हस्ताक्षर से एक आवेदन भेजा । उसने लिखा कि हम तो उजाले के हामी हैं । अंधेरा गहरा हो रहा था तो हम दिये की तलाश में भटक रहे थे । पचीस वर्षो से दीप से दीप जलाने का जतन कर रहे थे । अब अगर सरकार हमारे संगी साथियों को रोजगार और सम्मान दे तो हम वापस लौट सकते हैं ।
पत्र शासकीय अधिकारी ने रूचि लेकर बल्दू की कविताओं को पुस्तकाकार प्रकाशित करवा दिया । एक समाचार पत्र ने बल्दू का उपन्यास ही छाप दिया । छत्तीसगढ़ भर में बल्दू के लेखन कौशल की धूम सी मच गई । वह लगातार जागरण के गीत लिखकर नाच नाच कर सुनता रहा । इस बीच दो बार उस पर हमला हुआ । उसे केम्प में आकर रहने का सुझाव दिया गया । हमले उसके पुराने साथी कर रहे थे । बल्दू के पूराने साथी चाहते तो उसे मार ही देते मगर उसकी ईमानदारी और नक्सल आंदोलन में योगदान को वे भी स्वीकारते थे इसलिए ऐसे विलक्षण कामरेड को वे सदा के लिए चुप नहीं कराना चाहते थे ।
नक्सली मानते थे कि बल्दू है तो आखिर उनका ही साथी । गांव के लोग उसे अपना हितैषी समझते थे और सरकारी गलियारों में भी धीरे धीरे उसकी समझदारी और योग्यता की कद्र होने लगी ।
केम्प में रहते हुए बल्दू मे राजा भंजदेव स्मृति साहित्य मंच अंजोर का गठन कर लिया । इसी नाम से वह पत्रिका भी निकालने लगा । तीन अंकों बाद ही पत्रिका चर्चा में आ गई ।
बल्दू ने अनुमति लेकर एक भव्य समारोह रखवाया । उसमें राजा भंजदेव स्मृति सम्मान भी रखवा दिया । इस अवसर पर उसने मंत्री की उपस्थिति में कहा कि स्वाभिमान से जीने का हक सबको है । जंगल के लोग कभी किसी का हक नहीं छीनते । राजा भजंदेव की हत्या वनवासी सपनों की हत्या थी । डॉ.खूबचंद बघेल की बात अगर कांग्रेसी जन सुन लेते तो इतना खून खराबा ही नहीं होता ।
उसने कहा कि सरकारें अपना कर्तव्य निभायें, हम अपने ढंग से जीवन को व्यवस्था देंगे । मंत्री के सामने उसने यहां तक कह दिया कि डॉ.खूबचंद बघेल ने कहा कि कोई हमसे कुछ भी छीन सकता है मगर हमारी गर्वीली गरीबी नहीं छीन सकता । उसके इस कथन पर खूब ताली बजी । फिर उसने आगे कहा कि चंदूलाल चंद्राकर ने तो यहां तक कह दिया कि हक छीने जाने पर भी जो उफ न कर सके, समझो वही छत्तीसगढ़िया है । उनके इस कथन में तड़प है । अगर उनकी बात न समझी गई तो आज जंगल में धमक है कल पूरे छत्तीसगढ़ में बारूदी गंध से लोग अकबका जायेगे । छत्तीसगढ़ में सब सम्मानित सुखी स्ज्, केवल दुखी है तो छत्तीसगढ़ी । कोई लोहार सोनार के पद पर बैठा दिया जाता है लेकिन छत्तीसगढ़ चुप रहता है । मगर कोई छत्तीसगढ़ी कहीं एक पीढ़े पर भी बैठा दिया गया तो बाहर से आये शातिर लोग कुछ इस अंदाज में फंदा कसते हैं कि उसका दम ही घुट जाता है ।
उसके इस कथन पर भी तालियां बजी ।
बल्दू ने कहा जो आदिवासी का अ नहीं जानता वह आदिवासी संस्कृति पर बकवास करता है और वाहवाही पाता है । उसका भाषण चल ही रहा था कि मुख्य अतिथि आदिवासी मंत्री ने एक स्लिप भिजवाई, उसमें लिखा था कि थोड़ा संयम बरतें ।
कार्यक्रम समाप्त हुआ तो आदिवासी मंत्री ने कहा – आप सब बुजुर्ग हो गये हैं । जीवन भर हमारे लिए ही लड़ते रहे । अब आपका नाम हम प्रस्तावित करेंगे आदिवासी कला एवं साहित्य अकादमी के अध्यक्ष पद के लिए ।
बल्दू ने पूछा – आज तक तो आप लोग कुछ भी नहीं बना पाये । मध्यप्रदेश में था छत्तीसगढ़ तो वहां आदिवासी लोककला परिषद के बहाने बहुत काम हुआ । तीजन बाई, देवदास बंजारे और हमारे आदिवासी क्षेत्र के करमा शैला के कलाकार खूब आगे बढ़े । विदेश तक गये । लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद न तो कंगरेसिया राजा सजग हुआ न केसरिया किंग को कुछ चिंता हुई ।
कुछ लोग हंसने लगे ।
मंत्री ने कहा, आपका बायोडाटा हम ले चुके हैं । आप मैट्रिक पास हैं, फौज में भी रहे । जंगल की इज्जत बचाने के लिए लाल झंडा भी थाम बैठे । आप गलत नहीं हैं । हम सब आप का सम्मान करते हैं ।
बल्दू ने कहा – जो लोग पत्रकार रहते हुए आप लोगों की सेवा करते रहे उन्हें तो आप साहित्यकारों का नेता बनाकर बिठा दिये । पत्रकार को साहित्यकार मानते हैं तो मुझ जैसे आदिवासी लेखक को कहीं पत्रकार तो नहीं मान लेंगे । पत्रकारिता विश्वविद्यालय में तो नहीं भेज देंगे ।
उसके इस कथन पर और जोर का ठहाका लगा ।
जाते जाते बल्दू ने कहा – मंत्री जी, यहां आकर बाहरी लोग ताजपोशी करवा लेते हैं तो कोई कुछ नहीं कहता । माटीपुत्रों को सुखी रोटी का तुकड़ा भी मिला कि ये लोग हल्ला मचा देते हैें । आप संकट में पड़ जायेंगे । कभी किसी छत्तीसगढ़िया को कुछ मिला है कि मुझे आप देने की सोच रहे हैं ।
मंत्री जी ने अलग ले जाकर कहा – देखिए बल्दू जी, राजनीति करने वाले केवल जीत चाहते हैं । जीतने के लिए सारा छल प्रपंच चलता है । देखए सरकार है केसरिया आस्था की । आप हैं कामरेड मगर हर सरकार को स्थानीय चेहरे की तलाश रहती है । बल्कि आपको कुछ मान देने से यह भी तो संदेश जायेगा कि सरकार उदार है । इसलिए आप निश्चिंत रहें । मैं एक ही नाम भेजूंगा । मुख्यमंत्री भले मानुष हैं । उन्हें आपका लेखन खूब भाता है । छत्तीसगढ़ी हिन्दी दोनों में भई आप अच्छा लिखते हैं । कोई हिन्दी वाला छत्तीसगढ़ी में नहीं लिखता, कोई छत्तीसगढ़ी का बड़ा लेखक हिन्दी में डंका नहीं पीट सकता । आपने पहली बार यह कौशल हासिल किया है । योग्य थे तभी तो नक्सलियों ने आपको मान दिया ।
मंत्री जी के इस कथन पर बल्दू ठठाकर हंस पड़ा ।
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चार माह बीत गये । इस बीच बल्दू लगातार शांति और जागरण के गीत गाता रहा । खबरें आती थीं कि कुछ ही दिनों में बल्दू को आदिवासी साहित्य एवं लोककला परिषद की जिम्मेदारी दे दी जायेगी । इस बीच मुख्यमंत्री का मैना एक बार और जंगल में उतरा । बड़ी भारी सभा हुई । बल्दू द्वारा संपादित पत्रिका का विमोचन मुख्यमंत्री ने किया । बल्दू ने वहां छत्तीसगढ़ की सरलता और उस पर निरंतर हुए अत्याचार के बारे में लंबा भाषण दिया । मुख्यमंत्री से बल्दू का परिचय करवाया गया । आदिवासी मंत्री ने जाते जाते बल्दू की पीठ ठोंकते हुए कहा – 3बस, दो एक दिन बाद आप रायपुर आयेंगे । रहने को घर और घूमने को गाड़ी भी मिलेगी । छत्तीसगढ़ भर में घूमकर आप को अलख जगाना है ।
मंत्री के जाने के बाद जब एकांत मिला तब अंकालू ने कहा – भैया, मुझे तो विश्वास ही नहीं होता कि ये बेईमान अपना वचन निभायेंगे । ये इसी तरह झांसा देते रहे तभी तो हालत ऐसी बिगड़ी कि हम तुम गांव छोड़कर जंगल झाड़ी में भटकते फिरे । इनका कहना कुछ और करना कुछ ।
बल्दू ने कहा – अंकालू, ये लोग तो मुखौटे हैें । दिखते भर हैें आदमी की तरह । ये कठपुतली हैं । उपर के खिलाड़ी इन्हें बताते हैं कि केसरिया में थोड़ा लाल मिला लो तो ये लाल मिला देते हैं । इन्हें कहा जाता है कि लाल को काला घोषित करो तो ये काल-काला चिल्लाने लगते हैें । तुम्हें परेशान होने की जरुरत नहीं है । ये साले कभी किसी का्रंतिकारी को इज्जत दे ही नहीं सकते । इनके दलाल कुछ इस तरह जोकरई करेंगे कि नाचा के जोक्कड़ फेल हो जांय । देखना तो, होगा कुछ नहीं, खाली हमें नीचा दिखाने के लिए नाम उछालेंगे और हमारा कद नापने के लिए विवाद पैदा करेंगे । यह पूंजीवादी टोटका है । हम खूब समझते हैं । मजे से अपने लोगों की सेवा हम जीवन भर करते रहें । बचे हुए जीवन में भी इन्हीं के लिए लिखेंगे, लड़ेंगे । यही हमारा सही कर्तव्य है । मान इसी से मिला है और इसी से मिलता है । दक्षिण पंथी चोचलों से क्या होना जाना है कामरेड ।
अंकालू ने कहा, बहुत दिनों बाद तुमने मुझे कामरेड कहा भइया । बल्दू ने हंसकर उसकी पीठ पर धौल जमाते हुए कहा, तुम कामरेड न होते तो गांव में तहसीलदार के सामने खड़े न हो पाते । बड़ी बात है भाई यह । कामरेड कहलाना बड़ी बात है । सबसे बड़ी साधना है यह जीवन की । सबसे बड़ी साधना है यह जीवन की । अपने विचारों के लिए जीवन अर्पित करने हेतु सदा तैयार है, दुनिया भर के लोगों को जो एक मानता है । शोषण के हर औजार को नष्ट करने के लिए कटिबद्ध है । जाति-पाति, क्षेत्र और इलाके की बीमारी से मुक्त है वही तो कामरेड है ।
अंकालू ने कहा – मगर आप तो छत्तीसगढ़ के बारे में भाऊकतापूर्वक लिखते बोलते हैं ।
बल्दू ने कहा – जो भी दबाया जा रहा है, जिसका भी हक छीना जा रहा है, जिसे भी कुचला जा रहा है, उसके पक्ष में लड़ना ही तो कामरेड होना है । छत्तीसगढ़ के साथ अत्याचार हुआ है और हो रहा है इसीलिए मैं इसकी वकालत करता हूं । इसके लिए जान देने के लिए सदा तत्पर रहता हूं । और इसका मुझे गर्व है । मुझे ही क्या सभी मेरे कामरेडों को गर्व है । मैं कहीं से बिना कारण नहीं हटता अंकालू । जंगल से यहां कैम्प में आया हूं तो अपने साथियों को समझाकर सहमत करा लेने के बाद आया हूं । भागकर नहीं आया । एक प्रयोग है । देखते हैं । हम लोग केवल शोषकों का पंजा काट देना चाहत हैं । जीवन में रंग भरने के लिए तरह तरह का प्रयत्न करते हैं । यह भी उसी प्रयास का हिस्सा है । डटे रहो ।
***
वाकई बल्दू का अनुुभव ही सही निकला । आदिवासी साहित्य एवं लोक-कला अकादमी के गठन का समाचार एक दिन छपा । उसमें यह भी छपा कि छत्तीसगढ़ के प्रभावी साहित्यकार एवं क्रांतिकारी कवि बल्दू गोंड़ का नाम लगभग अध्यक्ष पद के लिए तय है ।
बल्दू ने इस समाचार को पढ़कर केम्प के अपने मित्रों के बीच पहले तो कुछ शानदार क्रांतिकारी गीतों का गायन किया । एक लड़के ने कहा – 3बड़े ददा अपन रात अंधियारी वाला गीत गा न गा ।
बल्दू ने कहा – बेटा हर अंधेरी रात का भी अंत आता है । तुमने कह दिया तो लो सुनो गीत ….
घपटे हे रात अंधियारी,
चल दिया बार संगवारी
बल्दू के साथ केम्प भर के लइका सियान गीत गा गा कर नाचने लगे ।
गाना खत्म करने के बाद बल्दू ने कहा – देखो भाई, पचास बरस से तो हम अंधियारी रात में ही चल रहे हैं ठोकर खाते हुए । लोग देश बेचने का काम करते हैं और मौज करते हुए उद्वारकर्त्ता का तमगा भी झटक लेते हैं । रावघाट को बेचकर करोड़ों खा लेते हैं फिर उसे वापस पा लेने की नौटंकी करते हैं । खेल है । भिलाई का इतना बड़ा कारखाना है । वहां क्या हालत है ट्रेड यूनियन की । जब तक सीटू का जोर था कर्मचारी के हित सुरक्षित थे । लाल झण्डे वालों के डर से बेइमान सही रस्ते में चलते हैं । आज न डर है न तराश, लूट मची है । फौज तक में दलाल घुस गये हैं । अब तो दलाल शासक हैं और वे ही अपने हिसाब से कठपुतलियों को जगह जगह बिठाकर नचाते हैं । लेकिन ये साले किसी कामरेड को नहीं नचा सकते । मुझे ये क्या बिठायेंगे । हमारे कारण ही तो इनका भट् ठा बैठ जाता है । ये हमें काम का अवसर देंगे तो इनके लग्गू-भग्गू भी भागते फिरेंगे । इसलिए छपी है यह खबर । जिससे यह भी जाहिर हो जाय कि ये कितने उदार हैं और देखना कल से इनके पाले हुए कुत्ते कैसे प्रेस विज्ञप्तियों के बहाने धमाचौकड़ी मचाते हैं ।
वाकई दूसरे दिन समाचार पत्रों में आने लगा कि एक पूर्व नक्सल के आगे सिद्धांतवादी देशभक्त झुक रही है । किसी केसरिया रंग में रंगे लेखक को यह पद सौंपना चाहिए । आदिवासी मंत्री कामरेड बल्दू का जातिभाई है इसलिए वह बल्दू को साहित्य एवं लोककला परिषद का अध्यक्ष बनवाना चाहता है जिससे पूरे छत्तीसगढ़ की लेखक बिरादरी नाराज है ।
बल्दू ने समाजार पढ़ा और खखार कर वहीं थूक दिया । खखारने के बाद बल्दू ने उपर देखा, आसमान पर जंगली चिड़ियों का झुण्ड जाने कितनी बड़ी संख्या में उड़ रहा था । नीले आसमान में एकदम भयमुक्त और मस्त ।
बल्दू अपने साथ बैठे लोगों का रक्षक भी था । उसे केम्प के लोग बल्दू पटेल कहते थे । और अंकालू को अंकालू कोटवार । यानी पूरी बिरादरी पर पटेल का हुकूम चलता था और उसकी सहायता के लिए सिपाही था अंकालू कोटवार । अंकालू ने कहा – बल्दू भैया, यह क्या नाटक है ।
बल्दू ने समझाते हुए कहा – अंकालू, ये तयशुदा नाटक है । दक्षिण पंथी भ्रष्ट सरकारें इसी तरह के चोचलों से काम चलाती हैं । ये ढंग उन्हें कुछ इस तरह मुआफिक बैठते हैं कि अमेरिका से इंडिया तक वे यही ढंग आजमाते हैं । ईराक में मिला क्या ? मिला कुछ यूरेनियम या बम ? नहीं मिला न । तो जब नहीं मिला तो नकटों को माफी मांग लेनी थी लेकिन साले उल्टे सवार हो गये । और तेल के लिए एक देश को क्तज्ञग्नसी में बदल दिया गया । दादागिरी है । बस यही तरीका है इनका । पहले कहो कि आप योग्य हैं फिर कहो कि योग्यता विनाषक है इसलिए आपकी जरूरत नहीं है । जबरदस्ती किसी को खतरनाक घोषित कर दो और तान दो गुलेल । यही तो तरीका है इनका ।
बात चल ही रही थी कि केम्प में रह रहे करमा दल के लोग आ गये । उन्होने कहा कि हम आज करमा ह्यबॅह्यब चाहते हैं । आप भी रहेंगे साथ में ।
बल्दू ने कहा – जरूर नाचो । नाचोगे नहीं, गाओगे नहीं तो यह काला समय तुम्हें लील लेगा । मैं फौज में था । नागालैण्ड में मेरी पोस्टिंग थी । वहां भी इसी तरह आदिवासियों को केम्पों में धांधा गया । खूब अत्याचार हुए । मगर वे नाचते गाते रहे । जीवन का रंग गाढ़ा करते रहे । देखो केम्पों में तब बेड़ दिये गये लोग ही आज राज चला रहे हैं । जिन्हे कल तक नगा विद्रोही कहते थे वही आज मिनिस्टर हैं । दक्षिण पंथी ताकतें आंख तब तक दिखाती हैं जब तक उसे सुरक्षित जीत का भरोसा रहता है । ज्योंहि उनका मचान थोड़ा सा हिला कि वे भदर -भदर कूद कर पीठ दिखाते हुए भाग जाते हैं । बल्दू की अधिकतर बातें अभी आदिवासी भाई-बहन समझ नहीं पाते । बल्दू को भरोसा है कि धीरे धीरे वे पूरी बात समझ सकेंगे । इसलिए बल्दू निराश नहीं होता । उसने वचन दे दिया कि वह भी आज करमा नाचेगा ।
शाम हुई । केम्प के बाहर खुले मैदान में करमा नृत्य करने की अनुमति मिल गई थी । सुरक्षा घेरे में ही सबको नाचना था ।
अंधेरा होते ही जंगल सांय-सांय करने लगता है । मैदानी मानुष जंगल की रात में या तो ऐयाशी की संभावना तलाशता है या डरकर कांपने लगता है । जबकि जंगल के लोग रात को कहीं दिन से अधिक खिलखिलाते हैं । अभी नाच शुरू नहीं हुआ था । बल्दू पेड़ के नीचे अंकालू के साथ बैठा था । उसके करीब उसी की उम्र का एक सांवला सा आदिवासी आकर बैठ गया । वह चोंगी पीकर बल्दू को देने लगा तब बल्दू ने भर नजर उसे देखा । अचानक उसके मुंह से निकला, अरे कामरेड सुदामा ।
सुदामा ने उसे चोंगी नहीं दिया । ठूठी चोंगी को कान में खोंसते हुए सुदामा ने कहा – कामरेड, मैं तुम्हीं से मिलने आया हूं । एरिया कमाण्डर नागेश ने मुझे भेजा है ।
क्यों ?
तुमसे मिलने के लिए.
मुझसे ?
हां भई, तुम्हीं से.
अब क्या हो गया ?
बहुत कुछ हो गया
बताइये तो.
बताता हूं कामरेड । हम लोग सलवा जुडुम में शामिल आदिवासियों के दर्द को समझते हैं । मगर वे भी किसी षडयंत्र के शिकार हैं । उन्हें नहीं पता कि किस तरह उन्हें भेड़ बकरी की तरह मैदान में अपने मकसद के लिए उतारा जा रहा है । वे भी धीरे धीरे ही समझेंगे कि यह आत्मछल है ।
ठीक है, मगर इस संदर्भ में मैं क्या कर सकता हूं । मुझसे मिलने के लिए क्यों भेजा हे कामरेड ने ।
ऐसा है बल्दू भाई, यहां केम्प में जय जगदीश हरे भजन गवाया जा रहा है । केसरिया रंग में आदिवासियों को रंगने की कोशिश हो रही है । यह तो दूरगामी परिणाम के लिए सोची समझी चाल है ।
है तो.
आपको यह सब अच्छा लगता है ?
क्या ?
यही इनका नाटक, यह सलवा जुडूम और दबाव, हिंसा की योजनायें ।
नहीं तो लगता.
तब यहां क्या कर रहे हैं ?
कोशिश.
कैसी कोशिश.
लोगो के भीतर हिम्मत पैदा करने की कोशिश । सही और गलत को समझने की तमीज पैदा करने की कोशिश.
बेकार की बात है ।
बेकार की बात नहीं है कामरेड । एरिक हाब्सवाम का यह कथन स्ग़ हम लोग अक्सर दुहराते हैं तिस पर भी हमें हथियार नहीं डाल देने चाहिए, उस जमाने में भी जो हमारे पक्ष में नहीं हैं । आज भी सामाजिक अन्याय की उसी तरह भर्त्सना करने की जरुरत है, जैसे हम पहले से करते आये हैं । दुनिया अपने आप, बिना हमारे हस्तक्षेप के बेहतर नहीं बनेगी ।
तो आप यहां क्या हस्तक्षेप कर पर रहे हैं?
इनके बीच कोई हो तो । तभी तो सिलसिला चल पायेगा । इन्हें क्या जय जगदीश हरे कहने वालो ं के लिए छोड़ दें ।
कामरेड आप वापस चलिए । बहुत हो गया मुख्य धारा में जुड़ने का नाटक । आप तो सदा से साधक कलमकार और जनता के लेखक माने जाते हैं । तब क्यों यह सरकार थूक कर चाट रही है । आपको जलील क्यों किया इसने ।
इसी में तो हमारी जीत है कामरेड । अगर केसरिया ब्रिगेट हमें पूरी तरह अपने अनुकू ल मान ले तो समझिए
हमारे भीतर कोई खोट है । मुझे तो लगता है यह मेरी ईमानदारी की जीत है कि वे घबराकर भाग खड़े हुए ।
… फिर भी अब यहां कोई खास काम आपके लिए नहीं दिखता । बेहतर है वापस लौट चलिए ।
अब बल्दू उठ खड़ा हुआ । उसने सुदामा के कंधे पर हाथ धरकर कहा – कामरेड संगठन, आंदोलन और व्यक्ति भी धीरे धीरे परिपक्व बनता है । विकास का क्रम उल्टा नहीं चलता । मैं गरीब आदिवासी के घर जन्मा, पढ़कर फौज में गया । परिस्थितिवश समय से पहले व्यवस्था के साथ दो दो हाथ कर बैठा । फिर जब कोई रास्ता न मिला तो आप लोगों के साथ चल पड़ा । लेकिन कामरेड, मैं हमेशा महसूस करता था कि नक्सली रास्ता केवल रास्ता ही है । वह किसी मंजिल तक जाने वाला रास्ता नहीं है । इसलिए मैने अब दूसरी डगर पकड़ ली है । अब यही मेरी राह है । इसी रास्ते पर चलकर परिवर्तन की आहट मैं कुछ-कुछ सुन पा रहा हूं ।
सुदामा ने कहा – हम लोगों को तो कुछ भी सुनाई नहीं पड़ रहा ।
सुनाई तब पड़े जब आप कान खोल कर रखें । आंख बंद कर कोई कुछ भी कैसे देख सकता है ?
… मतलब ?
… मतलब यही कि परिवर्तन का शंख बजता है तो उसकी ध्वनि धीरे धीरे प्रसार पाती है और एक दिन वह दिगंतव्यापी हो जाती है ।
सुदामा बल्दू की बातों का जवाब नहीं दे पा रहा था । उसे अवाक देखकर बल्दू ने कहा – कामरेड, तुम मुझे ले जाने आये थे, अच्छा हो यदि तुम भी मेरे हमसफर बनकर साथ साथ चलने लगो ।
सुदामा को कुछ भी सूझ नहीं रहा था ।
उसने ज्योहिं कान से ठूठी चोंगी निकाल कर सिपचाया, कि करमा नृत्य प्रारंभ हो गया ।
परदेशीराम वर्मा
एल.आई.जी.-18, आमदी नगर, हुडको, भिलाई (छ.ग.) 490 009
फोन ः 0788-2242217, मोबाईल 98279-93494






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