
सड़क का डिवाइडर ही पागल भोलू का घर था। गर्मी हो या ठण्डी बस नीम के पेड़ से टिका रहता । मन ही मन इशारे कर पेड़ से बातें करता और खुश होता।
डिवाइडर पर हर रोज लोग बचा खाना डालते तो पागल भोलू उस को हाथों में इक्कठा कर खा लेता । कुछ लोग पॉलीथीन में भरके बचा खाना डालते तो भोलू पॉलीथीन खोलकर खाना खाता।
कभी कभी उसे कुत्तों से जरुर झगड़ा करना पड़ता था पर वह उन्हें भगाता लेकिन मारता कभी नही था। इसलिए कुत्ते भी जानते थे भोलू थोड़ा बहुत खायेगा फिर तो हमारा ही है।
आज बड़ी सी काली थैली में किसी ने कुछ डाल कर गया था। भोलू कुत्तों को भगाते हुए कह रहा था – ” पहले मैं खाऊँगा, पहले मैं खाऊँगा।”
कुत्ते भोलू पर भोंक कर कह रहे थे – ” नही – नही , पहले हम खायेंगे । “
एक तरफ थैली को कुत्ते खींच रहे थे तो दूसरी तरफ भोलू । दोनों अपनी – अपनी ताकत अजमा रहे थे। आखिर पागल भोलू ने बड़ा – सा पत्थर मारने के लिए ताना तो कुत्ते जान बचाकर , दुम हिलाने लगे।
पागल भोलू ने बड़ी मुश्किल से थैली की गाँठ खोली तो देख कर दंग रह गया । थैली से रोती चीखती कन्या को निकाल , सीने से लगाते हुए कहा – ” तू भी कितनी पागल है सारी दुनिया छोड़कर मेरे पास आ गई , चुप हो जा , अब दुनिया तेरा कुछ नही बिगाड़ सकती “
भोलू के सामने ही कुत्ते खाली काली थैली को नौच नौच कर बुरी तरह फाड़ रहे थे ।
नवजात बच्ची भोलू के हाथों में आकर चुप हो गई। कुत्ते अपनी माँग करते भोंक कर आखिरकार चले गये।भोलू स्नेह से बच्ची को खिलाते हुए कह रहा था – ” तू मेरी बेटी है, मैं तूझे पालूँगा , यहाँ बहुत खाना आता है।”
बच्ची फिर जोर – जोर से रोने लगी। भोलू ने कहा – ” अब क्या हुआ ? ” बच्ची रोई जा रही थी।भोलू ने कहा – ” भूख लगी है ? ” भोलू रोना बंद करने के लिए कभी सीने से लगाता तो कभी हाथों में लेकर झूलाता लेकिन बच्ची का रोना बंद नही हो रहा था।
भोलू ने सामने एक मकान का दरवाजा खटखटाया तो एक वृद्ध महिला निकली अौर भोलू के हाथों में बच्चा देख कर बोली – ” भोलू ये किसका बच्चा उठा लाया । जा जाकर देकर आ। “
भोलू ने सहमते हुए कहा – ” नही अम्मा , मुझे ये बच्ची नीम के पेड़ के नीचे काली थैली में मिली है । ये मेरी बेटी है। आप तो बस एक गिलास पानी दे दो तो इसे पिला दूँ। “
वृद्ध महिला ने भोलू के हाथों से बच्ची छीन कर बोली -” अरे अकल के मारे तू पानी पिला कर नन्ही सी जान की जान लेगा क्या ? चल , ला मुझे दे।”
भोलू ने बिना देरी किये बच्ची को छीन कर कहा -” नही ये मेरी बेटी है इसे कोई मुझे से नही ले सकता। तुम पानी देती हो तो ठीक वरना मैं दूसरे घर से जाता हूँ। “
वृद्ध महिला ने भोलू का एक हाथ कस कर पकड़ कर बोली- ” रूक भोलू , मैं अभी लाई गाय का दूध , देखना कैसी बच्ची भूख से तडफ के रो रही है ?”
वृद्ध महिला ने एक कटोरी में दूध व चम्मच लेकर आई , भोलू के हाथों में ही वृद्ध महिला ने दूध पिलाना शुरू कर दिया। बच्ची ने रोना बंद कर दिया था।
वृद्ध महिला ने भोलू को समझाते हुए कहा – “भोलू बच्ची को मुझे दे दे , मै इसे दूध पिला दिया करुँगी । “
भोलू बोला – ” मेरी जान ले लो पर इसे ना माँगो। ” भोलू की जिद्द के आगे वृद्ध महिला की एक न चली । वृद्ध महिला ने पुलिस की भी धमकी दी पर भोलू पर कोई असर न पड़ा वो तो बच्ची को पाकर खुशी न समा रहा था। बच्ची को दोनों हाथों में उछाल कर खिला रहा था। मानो उसे जीने का मकसद मिल गया हो।
वृद्ध महिला ने डॉक्टर बुलाकर बच्ची को दिखाया । कुछ दवायें दी । कुछ कपडे़ दे दिये भोलू से कहा भी बच्ची मुझे दे दे । जब चाहे तू मुझसे ले जाना लेकिन भोलू बच्ची को किसी कीमत में छोड़ने को तैयार नही था।भोलू कहता – ” बच्ची तो ईश्वर ने मुझे दी है । मैं दूसरों के हवाले कैसे कर दूँ। “
भगवान जब जिम्मेदारी देता है तो पागल को भी बुद्धि दे देता है ।दिन रात वृद्ध महिला बच्ची पर नजर रखती तो भोलू डिवाइडर के आसपास ही बच्ची को लेकर भीख माँगने लगा।जो भी रुपए उसे मिलते उसका दूध खरीद कर , बच्ची को पिला देता। वृद्ध महिला देख देख कर सभी लोगों से यही कहती – ” जाको राखे सांईया मार सके ना कोय ।” वृद्ध महिला ने बच्ची का नाम हरसिध्दी रखा तो भोलू भी हरसिध्दी कहकर उसे खिलाता अौर मन ही मन फूला ना समाता।
दो सालों में बच्ची ने पेैरों से चलना शुरु कर दिया तो भोलू ने एक होटल में बर्तन साफ करने का काम शुरु कर दिया। वृद्ध महिला पर भोलू को भरोसा हो गया था इसलिए वह उसके घर भी छोड़ने लगा। पाँचवें वर्ष में हरसिध्दी स्कूल में होशियार होने के कारण सभी शिक्षकों की प्रिय हो गई। शिक्षकों के हर सवाल का जवाब तुरंत दे देती । कहते हैं ना ज्ञान को कौन कैद कर सका है । अपनी प्रतिभा के दम पर हरसिद्धि हर कक्षा में प्रथम तो रहती ही साथ ही साथ अपनी चंचलता व सक्रिय सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भागीदारी से सभी शिक्षकों का मनमोह लेती । जब कक्षा बारहवीं में जिले में प्रथम आई तो एक संस्था ने उसकी पढ़ाई की जिम्मेदारी ले ली। मानो हरसिद्धि के ख्वाब को पर मिल गये हों। एमबीबीएस की पढ़ाई में अपना तन-मन झोंक रही थी हरसिद्धी ने अब एक डॉक्टर बन बेटियों को बचाने का कडा संकल्प ले लिया था।
कड़कड़ाती ठण्डी थी। भोलू ने रात भर बर्तनों को मांझा । हाथ अौर शरीर अकड़ चुके थे । सुबह फिर सर्द हवा में उठकर साफ सफ़ाई के काम में लग गया ।होटल मालिक के आने से पहले वह होटल में तैनात था। होटल मालिक को देखते ही भोलू ने राम – राम कहा अौर आँखों के सामने धुंधलापन छा गया जब तक वह संभलता वह धडा़म से जमीन पर जा गिरा। सामने रखे टेबल के कोने से सिर टकराया अौर सिर से खून बहना शुरू हो गया। होटल मलिक ने तुरंत उठाते हुए कहा – ” क्या हुआ भोलू ?” लगातार खून बह रहा था।होटल के कर्मचारियों को आवाज दी अौर बिना समय गंवाये भोलू को अस्पताल पहुँचाया गया। भोलू का इलाज डॉ हरसिद्धी कर कह रही थी -” अब कैसे हो पापा । ” भोलू की आँखों का धुंधलापन हटा व देखा तो कहा – ” मैं कहाँ हूँ बेटी? “
डॉक्टर हरसिध्दी ने कहा -” आप अस्पताल में हो पापा , दादीमाँ ( वृद्ध महिला )का खून मैच हुआ तो आपको चढ़ा दिया।” सामने वृद्ध महिला ईश्वर से भोलू के स्वस्थ्य होने की प्रार्थना हेतु हाथ जोड़े खड़ी थी। भोलू ने कहा -“सच कहा बेटी , न जाने कितने जन्मों की हमारी माँ है।”
वृद्ध महिला ने मुस्कुराते हुए कहा-” मेरी तारीफ़ छोडो बेटा, तारीफ तुम्हारी बेटी की करो। इसने तुम्हारी जान बचा ली। “
दूर खड़ा होटल मालिक मन ही मन सोच रहा था – ” मैं कितना अभागा हूँ जो इतनी होनहार बिटिया को काली थैली में डालकर पागल भोलू के सामने रख कर आ गया था। ” उसके आँसू थमने का नाम नही ले रहे थे। पिता -पुत्री व दादी माँ एक दूसरे से मिलाप कर रहे थे ।इन्हें देखने के लिए बेड के चारों तरफ भीड़ लग गई थी। होटल मलिक भोलू के पैरों पर गिर कर बोला -“भोलू मेरा पाप माफ़ करने योग्य नही है मेरे भाई। अगर हो सके तो माफ़ कर देना , वो काली थैली मैंने ही . . । भोलू भैया तुम तो ईश्वर हो।” कहते – कहते हॉटेल मालिक के आँसू रूकने का नाम नही ले रहे थे।
विनोद नायक
77- B, श्री हनुमान मंदिर , पानी की टंकी के पास ,
खरबी रोड़ , शक्तिमाता नगर , नागपुर, महाराष्ट्र, भारत
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