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बाल कविता – नन्ही सी दुनिया बसाये (भाग-3)- सुधा वर्मा

बाल कविता – नन्ही सी दुनिया बसाये (भाग-3)- सुधा वर्मा

भोलेपल  और मासूमियत से भरा होता है। वह बोलना सीखता है। वाक्य बनाना सीखता है। कुछ कल्पनायें करता है । फिर उस कल्पना को साकार करना चाहता है। कभी कभी यह कल्पना अनोखी होती है।

       वह सोचता है पेड़ पौधे बातें कर रहे हैं। उनके चेहरे को देखकर बोलता है –“माँ आज चिड़िया भूखी है, उसे खाने को दो”।

“माँ देखो, बंदर की तबीयत खराब है -तभी वह उदास बैठा है।”

सजीव के साथ साथ बचपन निर्जीव  के बारे में भी सोचता है। यह बाल गीत बच्चों को कल्पना लोक मे ले ही जायेगी और उसे उनके यथार्थ को भी बतायेगी। इन गीतों मे बच्चे के आसपास के परिवेश के ही बारे में बताया गया है। पानी की बूंदे ,जो बच्चों के लिये अनोखी होती है, पानी में बुलबुले बनते हैं और फिर कुछ दूरी तक बहने के बाद, फूट जाते है। मन उसके साथ दौड़ता है और बच्चा भी कूदने लगता है।

           हर मौसम का आनन्द वह अपने अनोखे तरीके से लेता है।  हाथी ,बंदर ,फिरकी, चींटी -सब उसके आसपास के हैं, जिससे वह कुछ सीखता है।  उनकी भावनायें उनकी हरकतें, खाने की चीजें, और रोज की दिनचर्या, बच्चे के व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होती है।गीतों में गेयता आवश्यक नहीं, अभिनयात्मक ढंग  से पढ़ते हुए,बच्चों को सिखाया जा सकता है। अभिनय का प्रभाव बच्चों।पर बहुत अधिक पड़ता है। इससे बच्चे कुछ सीखते हैं अभिनयात्मक शब्दों का प्रभाव बच्चों पर जल्दी पड़ता है,–क्योंकि बच्चे नकल जल्दी करते हैं। उनमें ग्रहणशक्ति तीव्र होती है।

        नबाल मनोविज्ञान कहता है कि बच्चे अपने परिवेश से सीखते हैं। हम उस परिवेश से सीखते बच्चों को एक दिशा दे दें तो खेल से सीखी हुई सीख को, वह जीवन भर नहीं भूलता है। वही बातें उनके व्यक्तित्व में दिखाई देती है। तीन से पाँच साल तक की उम्र में बच्चे के मस्तिष्क का पूर्ण विकास हो जाता है। हमें उस बाल रुप में ही बच्चों को नैतिकता  सिखानी चाहिये ।

 आपके हाथ में “अलबेले बुलबुले” गीत संग्रह  हैं। अब आप इसे चित्रों के माध्यम से बच्चों को पढ़ायें।

          मेरा बचपन  गीतों और कहानियों  के बीच ही बीता है। मैं प्रकृति के बीच में बहुत कुछ सीखी थी।माँ बहुत लोक कथायें सुनाती थी। मेरे  पिताजी जब भी मुझे साइकिल पर बैठाकर घुमाने ले जाते ,तो हर दृश्य को गुनगुना कर बताते। साथ में मैं भी वैसे ही बोलती।

          मेरी लाडली पोती “आद्या” कोविद के दूसरे चरण में पैदा हुई थी। घर पर सब लोग थे। मैं उसे हवा, पंखा, पर्दे पर कविता सुनाते रहती थी। बोलने लायक हुई, तो वह दोहराने लगी। उसी समय इन गीतों ने जन्म लिया। आज “आद्या ” हिंदी अँग्रेजी में बहुत से गीतों को सुनाते रहती है। मैनें “आद्या” के साथ एक दुनिया बसा ली। बाल मन की उत्सुकता को गीतों के माध्यम से बताना बहुत ही सुखद होता है। वह नहाते समय, खेलते समय बस गाते रहती है। मैं बहुत से गीतों को उसे सुना चुकी हूँ। आज मैं अपने इस बाल गीत संग्रह को अपनी लाडली पोती “आद्या” को समर्पित करती हूँ।

सुधा वर्मा                  
प्लाट न. 69,”सुमन”
सेक्टर1,गीतांजली नगर रायपुर ,
छत्तीसगढ़
पिन -492001
मो. 94063 51566

21.राखी

राजा भैय्या आया है
कपड़ा नया लाया है।

मीठाई तुमको खिलाऊँगी
राखी भी तुमको बाँधुगी।

पहले तुझे लगाऊँ टीका
लम्बी उमर का धागा बाँधू।

मेरा प्यारा भैय्या आया
प्यार भरी झोली माँगूँ।

मेरी बहना प्यारी बहना
हमें साथ में है रहना।

तूने बाँधी रेशम की डोरी
मेरे हाथ का यह गहना।

यह राखी का धागा है
रक्षा करने का वादा

बहना प्यारी भोली-भाली
दिखती तू निराली है।

22.जलेबी

नाम है मेरा जलेबी
सब मिठाइयों में हूँ अलबेली।

गोल गोल चाशनी मेंडूबी
नाश्ते की प्लेट पर सजी।

खाने की थाली पर भी डटी
नाम है मेरा जलेबी।

खाने में मीठी-मीठी
कभी-कभी थोड़ी खट्टी।

केशरी रंग जिस पर चढ़ा
नाम है मेरा जलेबी।

दूध में भीगी जब भी
पेट को रास्ता दिखाये सही।

रबड़ी के साथ मिलकर
और भी हो जाती स्वाद भरी।

नाम है मेरा जलेबी
सब मिठाइयों में हूँ अलबेली।

23.पानी

बादल से है आता पानी
नदी में है जाता पानी।

रिमझिम रिमझिम बरसा पानी
नदी तालाबों में भरता पानी।

बर्फ़ बन जम जाता पानी
पिघल-पिघलकर बनता पानी।

समुद्र में भी जाता पानी
खारा बनकर इतराता पानी।

कुँओं में भी जाता पानी
मीठा-मीठा हो जाता पानी।

बादल से है आता पानी
धरती की प्यास बुझाता पानी।

सबके पीने के काम आता पानी
सबकी प्यास बुझाता पानी।

24.पानी बरसा

देखो-देखो पानी बरसा
रिमझिम रिमझिम पानी बरसा।

आओ खेलें छपा छप छप
आओ खेलें छपा छप छप।
रामू आओ श्यामू आओ
दोनों झटपट बाहर आओ।

देखो-देखो पानी बरसा
रिमझिम रिमझिम पानी बरसा।

25.नाव चली

पानी की है धार चली
देखो उसमें नाव चली।

नाव चली नाव चली
सोनू की नाव चली।
लाल-लाल नाव चली
मोनू की नाव चली।

पीली-पीली नाव चली
देखो सबकी नाव चली।

पानी की है धार चली
देखो सबकी नाव चली।

26.बुलबुले अलबेले

पानी के हैं बुलबुले
सुंदर-सुंदर अलबेले।

छोटा-सा है जीवन इसका
सुंदर-सुंदर प्यारा।

छतरी लेकर चलते हैं
फुदक-फुदककर हँसते हैं।
पानी के हैं बुलबुले
सुंदर-सुंदर अलबेले।

हमें हँसना सिखाते
जीवन से लड़ना सिखाते।

छोटा-सा है जीवन इनका
सुंदर-सुंदर प्यारा।

पानी के हैं बुलबुले
सुंदर-सुंदर अलबेले।

27.खट-से

स्विच दबाया खट-से
लाइट जल गई फट-से।

पंखा चलता फर फर फर
देती हवा सर सर सर।

मिक्सी चलती घर घर घर
पंप चलता घर घर घर।

चलो देखें टी.वी. पर पिक्चर
जल्दी सो जाओ बिस्तर पर।

स्विच दबाया खट-से
लाइट बंद हो गई फट-से।

28.सफाई

बंदर मामा चले नहाने
सुस्ती अपनी दूर भगाने।

मुँह में दातौन दबा कर
साबुन कंघी कपड़े लेकर।

बंदर मामा चले नहाने
सुस्ती अपनी दूर भगाने।
पेड़ों की डालों पर लगे कूदने
यहाँ-वहाँ लगे झूलने।

दातौन चबा लगा इतराने
सबको लगा दाँत दिखाने।

पानी पर लगा छलाँग लगाने
लगा डुबकियाँ लगाने।

बंदर मामा चले नहाने
सुस्ती अपनी दूर भगाने ।

29.ढक्कन

पानी कहता मुझे ढक दो
बाल्टी कहती मुझे ढक दो।

भोजन कहता मुझे ढक दो
थाली कहती खुली हूँ मैं।

मुझे तुम पंखा झल दो
मक्खी देख मैं रोती हूँ।

पेट दर्द से सोती हूँ
फल कहता मुझे ढक दो।

मिठाई कहती मुझे ढक दो
जाली से इन सबको ढक दो।

बीमारियों से बचना है तो
ढककर रखना सबको।

30.हाथी

सर्कस में था एक हाथी
रामू जिसका नाम।

लम्बी थी सूँड एक
बड़े थे जिसके दो कान।

लम्बे-लम्बे दाँत दो
भारी-भारी पाँव चार।

केला शौक से खाता
सूंड में पानी भर खूब नहाता

कभी फोड़ता नारियल
कभी चढ़ाता शिवजी पर जल।

कभी खेलता फुटबॉल
डालता कभी गोले पर रिंग।

पैर उठाकर करता नमस्कार
सूँड हिला करता सबको प्यार।

सर्कस में था हाथी
रामू जिसका नाम।

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