

साहित्य की रोशनी से जीवन को आलोकित करने वाले साहित्यकार श्री डुमन लाल ध्रुव
– श्रीमती कामिनी कौशिक, रिसाईपारा धमतरी
मेरे साहित्यिक जीवन में यदि किसी व्यक्तित्व का सबसे गहरा प्रभाव रहा है तो वह है श्री डुमन लाल ध्रुव । वे केवल एक साहित्यकार नहीं बल्कि हमारे परिवार के सदस्य हैं। मेरे पति स्व.श्री रविन्द्र कौशिक, जेठ स्व.श्री नरेंद्र ठाकुर, देवर स्व. श्री महेन्द्र कौशिक, दीदी श्रीमती शीला ठाकुर, देवरानी श्रीमती आरती कौशिक अक्सर डुमन लाल ध्रुव के व्यक्तित्व को लेकर हमेशा चर्चा होती थी। आज भी होती है। मुजगहन डुमन लाल ध्रुव के नाम से जाना जाता है। हमारे बच्चे व हमारा परिवार एक प्रेरणा स्रोत, मार्गदर्शक, मित्र और संस्कारों के दीपक के रुप में मानते हैं। मेरा परम सौभाग्य है कि मुझे जिले के शीर्ष साहित्यकारों एवं जिला हिन्दी साहित्य समिति के प्रत्येक सदस्यों से सीखने का,विशेष आशीर्वाद, प्रेरणा ,प्रोत्साहन ,मार्गदर्शन और सहयोग कदम-कदम पर प्राप्त हुआ है । मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानती हूं कि मुझे डूमन भैया के सान्निध्य में रहकर साहित्य की दुनिया में प्रवेश करने का अवसर मिला। उन्होंने न केवल मुझे लेखन के लिए प्रेरित किया बल्कि जीवन को संवेदनशील दृष्टि से देखने की कला भी सिखाई।
श्री डुमन लाल जी नारायण लाल परमार के स्नेही शिष्य हैं। उन्होंने हिन्दी और छत्तीसगढ़ी साहित्य में अपने शब्दों से एक अलग ही पहचान बनाई। कहानीकार के रूप में उनका योगदान उल्लेखनीय है। उनके लेखन में ग्रामीण जीवन की सहजता, लोक संस्कृति की गहराई और मनुष्य के मन की सूक्ष्मताओं का सुंदर चित्रण मिलता है। उनकी कहानियां केवल कथाएं नहीं बल्कि समाज का दर्पण है । जिसमें आशा, संघर्ष, प्रेम, करुणा और मानवीय मूल्य उजागर होते हैं।
धमतरी जिला हिन्दी साहित्य समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने न केवल साहित्य को बढ़ावा दिया बल्कि अनेक नवोदित लेखकों को प्रोत्साहित किया। मैं स्वयं उनके मार्गदर्शन में लिखना सीख पाई। उन्होंने मेरी लेखनी में आत्मविश्वास जगाया, मेरी रचनाओं की समीक्षा की, गलतियों को सुधारा और साहित्यिक परंपरा का सम्मान करना सिखाया। उनकी सहजता और विनम्रता यह दर्शाती है कि एक बड़े साहित्यकार का मन कितना दयालु और बड़ा हो सकता है।
साहित्य, संगीत और कला के प्रति उनका प्रेम भी प्रेरणादायी है। उन्होंने संगीत और पेंटिंग में अभिरुचि विकसित करने का वातावरण बनाया। उनकी बैठकों में साहित्य के साथ-साथ राग, स्वर, चित्रकला और लोक जीवन की चर्चाएं होती हैं । यही नहीं उन्होंने ‘ साहित्य संगीत सांस्कृतिक मंच मुजगहन ’ की स्थापना कर ऐसे मंच की रचना की जहां रचनात्मकता का उत्सव मनाया जाता है। यह मंच साहित्यिक गतिविधियों के साथ-साथ सांस्कृतिक चेतना का केंद्र बन चुका है।
छत्तीसगढ़ राज्य में पहला ‘ साहित्य सदन ’ बनवाकर उन्होंने साहित्य के लिए स्थायी संरचना की नींव रखी। यह सदन साहित्यकारों, पाठकों और संस्कृति प्रेमियों के लिए एक आश्रय स्थल बन गया है जहां विचारों का आदान-प्रदान, रचनाओं का पाठ, कार्यशालाएं और संवाद होते हैं। यह उनके दूरदृष्टि वाले व्यक्तित्व का प्रमाण है।
मेरे लिए वे केवल साहित्यकार नहीं बल्कि जीवन के शिक्षक हैं। उन्होंने मुझे शब्दों के माध्यम से आत्मा की आवाज पहचानना सिखाया। उनकी प्रेरणा से मैंने लेखन की दुनिया में कदम रखा और निरंतर आगे बढ़ रही हूं।
आज जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं तो पाती हूं कि डुमन लाल जी का स्नेह, विश्वास और मार्गदर्शन ही मेरे साहित्यिक व्यक्तित्व का आधार है। मैं उनके प्रति कृतज्ञ हूं। मेरा परिवार कृतज्ञ हैं। उनकी साहित्य साधना, सांस्कृतिक प्रतिबद्धता और मानवीय संवेदनाओं से प्रेरित होकर ही हम जैसी अनेक साहित्य प्रेमियों ने स्वयं को विकसित किया है।
साहित्य जगत में उनकी अमिट पहचान, लोक संस्कृति के प्रति उनकी निष्ठा, नवलेखकों के प्रति उनका वात्सल्य और कला के प्रति उनका समर्पण आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा। मैं ईश्वर से उनके दीर्घायु, स्वास्थ्य और सृजनशील जीवन की कामना करती हूं।
अरुण सबसे पहले उगना चाहेगा,
आपके ही जीवन में ,,,,
बसंत बहारें देना चाहेगा,
आपके ही जीवन में ,,,,
दिव्य रश्मियां वहां होंगी,
न होंगी वहां रात्रि कालिमा,,,
दुःख की परछाई न पड़े कभी,
यह कोशिश करेगा चन्द्रमा,,,,
!¡!!!! जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,,,,, दीर्घायु हों, यशस्वी हों,,,,,!!!!!!!
श्रीमती कामिनी कौशिक
रिसाईपारा धमतरी






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