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Surta – 2018 से हिंदी और छत्तीसगढ़ी काव्य की अटूट धारा।

कहानी: पानी-डॉ.परदेशी राम वर्मा

कहानी: पानी-डॉ.परदेशी राम वर्मा


डॉ. परदेशी राम वर्मा एक प्रमुख हिंदी और छत्तीसगढ़ी साहित्यकार हैं, जिनका जन्म 18 जुलाई 1947 को हुआ था। उन्होंने कथा संग्रह, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण, बाल साहित्य और शोध प्रबंध जैसी विभिन्न विधाओं में 36 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। उन्हें पं. सुंदरलाल शर्मा राज्य अलंकरण-2013 और पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से डी.लिट् की उपाधि से सम्मानित किया गया है। 

  • डॉ. परदेशी राम वर्मा की कहानियाँ छत्तीसगढ़ के जनजीवन, संघर्ष और अन्य विशेषताओं का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे वे समकालीन समाज का आईना बनती हैं। 
  • उन्होंने हिंदी और छत्तीसगढ़ी में लेखन करके पूरे देश में पहचान बनाई है।
  • उन्होंने कथा संग्रह, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण, बाल-काव्य संग्रह, नाटक, बाल-कथा संग्रह, छत्तीसगढ़ी लोककथाएँ, और छत्तीसगढ़ पर केंद्रित वैचारिक पुस्तकें लिखी हैं।
  • उनके कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं: आठ कथा-संग्रह, तीन उपन्यास, छह नवसाक्षर साहित्य की पुस्तकें, दस संस्मरण, एक नाटक, एक बाल-काव्य-संग्रह और दो जीवनी।
  • पंडित सुंदरलाल शर्मा राज्य अलंकरण (2013): छत्तीसगढ़ का सर्वोच्च राज्य साहित्य सम्मान। 
  • डी.लिट् की उपाधि: 2003 में पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से प्रदान की गई। 
  • माधवराव सप्रे अवार्ड (1999): देवदास बंजारे की जीवनी ‘आरुगफूल’ के लिए प्राप्त किया। 
  • राष्ट्रीय लोकभाषा सम्मान: 2025 में प्राप्त हुआ। 
  • साकेत संत सम्मान: 2019 में प्राप्त हुआ। 
  • प्रस्तुत कहानी पानी वागार्थ साहित्यिक पत्रिका के फरवरी2025 के अंक में प्रकाशित है ।

पानी

अजीब गांव की कहानी है यह । नाम है इसका खरखरा तो उसी के अनुरूप यहाँ के ग्रामीण भी खरखारते रहते हैं । आसपास के गांवो में खरखरा एक झगड़े वाला गांव है जहाँ हर दस साल में बलवा हो जाता है । एक सौ सात सत्रह क्या धारा है उसे यहाँ का बच्चा बच्चा जानता है ।

खरखरा अच्छी खेती किसानी वाले पिछड़ों और दलितों का गाँव है । मजे की बात है कि पिछड़ों के पास जितनी जमीन है उससे कम दलितों के पास नहीं है । छत्तीसगढ़ इसीलिए अनोखा प्रान्त कहलाता है । यहाँ ऊंच नीच, दलितों के शोषण की कथाएँ उत्तर भारत की तरह सामने नहीं आती । इसलिए प्रेमचंद की कहानी के फिल्मांकन का विरोध हुआ था कि यह हमारे इलाके की कथा नहीं है । जहाँ की है वहाँ फिल्माएँ । मैं अपनी उम्र के हिसाब से आपको एक एक घटना बताऊँ तो कई घटनाएँ बतानी पड़ जायेगी खरखरा को जानने के लिए । जबकि खरखरा के बारे में सब कुछ जानने के लिए केवल दो घटनाओं को जान लेना ही काफी है ।

चलिए पहली घटना को जानिए ।

बात सत्तर वर्ष पहले की है । तब देश को आजाद हुए कुछ ही बरस हुए थे । सोहन सतनामी ने दलित मुहल्ले के लोगों को अपने घर बुलाकर बताया कि एक बड़ी घटना घटने वाली है । मेरी जो पचीस एकड़ की खेती है उससे लगी समेलाल दाऊ की भी जमीन है । पानी बड़े तालाब से हम दोनों ही लेते हैं । चकबंदी हुई उसके पहले से यही व्यवस्था है । तालाब हमारे बाबाजी और बड़े दाऊ के पिताजी ने अपनी चार-चार एकड़ जमीन देखकर खुदवाया ।

दो कुलापा लगा । एक को सब कुरमी कुलापा कहते हैं । दूसरा है सतनामी कुलापा । कुरमी कुलापेे से समेलाल दाऊ की खेती में पानी जाता है सतनामी कुलापे से पानी पाकर मेरे तथा पोसुदास और आप अन्य सतनामतिमयों के खेत धान उगलते हैं ।

चारो ओर के गांवों के लोग जानते हैं कि छत्तीसगढ़ के हर तालाब में खम्भा हमारे सतनामी समाज के लोगों के सहयोग से लगता है । हमारे बाबाजी ने गाँव के तालाब में खम्भा लगाया था । असल सरई से बना खम्भा जो आज भी तालाब में है।

दाऊ की घरवाली खुद बटकी में बासी लेकर दिन भर के लिए खेत आ जाती है । वह पड़ोसन है हमारी । जब तब मुझे कोई काम भी बता देती है तो मैं इंकार नहीं करता ।
मजदूरों पर निगरानी रखने के लिए बासी चटनी लेकर वह बिलानागा रोज खेत में आ जाती है । मैं भी अपनेखेत में अपने नौकर, मजदूरों के साथ दिन भर काम करता हूँ । शुरू में तो मुझे भरोसा नहीं हुआ मगर एक दिन समेलाल दाऊ की घरवाली ने अपनी बासी चटनी मेरे लिए भिजवा दी । यही समारू लाया था ।

क्योें रे समारू लाया था कि नहीं ? प्रेम मिली झिड़की के साथ सोहन ने पूछा । समारू ने कहा – मुझे हफ्ते भर से पूछ रही थी जमुना गौटनिन कि तुम्हारा मालिक मेरी बासी खायेगा कि नहीं । मैंने कहा हम लोगों की जाति अलग आपकी अलग मैं कैसे कह सकता हूँ कि वे आपकी बासी खायेंगे कि नहीं ।

जमुना गौटनिन ने कहा तुम कल पूछकर बताना अपने मालिक को यहां कहाँ दलित और पिछड़े समाज की बात है । यह तो प्रेम का सौदा है ।

आखिर प्रेम के कारण मैं बासी खाने पर मजबूर हो गया । जमुना गौटनिन उसके बाद खुद बासी लेकर आने लगी । कभी कभी डौका रोटी में घी लगाकर लाने लगी । उसके मंडल समेलाल ने जब जाना तो वे बहुत बिगड़े ।

पास में बैठे पोसू दास ने पूछा । बिगड़ना ही है । तुम उसकी जवान औरत की बासी और रोटी ही नहीं खाए होगे । देखने में जमुना तो जगाजग है । ठाड़ मोटियारी । एक बच्चे की माँ है पर अटल कुंवारी दिखती है ।

सोहन ने उसे चुप कराते हुए कहा – पोसूदास मेरा सदा का मितान है । इसे सब पता है । मेरी घरवाली पांच साल के मेरे बिजलाल बेटे को छोड़कर मरी तब से मैंने विवाह नहीं किया । अभी जवान हूँ । चार डौकी रख सकता हूँ । जमुना बाई मेरे बल से मोहा गई । उसका आदमी समेलाल खुद अपनी पड़ोसन भौजी के साथ फंसा है । तुम सब जानते हो । समेलाल है डरपोक । रात को पेशाब भी उठता है तो जमुना उसे आँगन में लेकर आती है । तब वह पेशाब करता है । जमुना कहती है ऐसे आदमी के साथ रहने का क्या सुख है । वह कल मेरे घर में पैठू घुसना चाहती है । मेरी पत्नी बनने के लिए चूड़ी पहनना चाहती है । मैं तुम लोगों से पूछता हूँ कि उसे अपने घर में घुसा लूं कि नहीं । पोसूदास ने कहा – जब वह खुद तुम्हारे घर में घुसना चाहती है तो डरते क्यों हो । हमारे समाज में सब जाति की औरत को हम प्रेम से मिला लेते हैं ।

तुम्हारी बाई भी नहीं है । तुम्हारा बेटा अब तीसरी कक्षा में पढ़ रहा है । उसे नई दाई मिल जायेगी । चूड़ी पहना लेना । डौका-डौकी मजे से रहना । पोसू को रोककर भकाड़ू ने तनियाते हुए कहा – पोसूदास यह इतना आसान मामला नहीं है । वे लोग पिछड़े समाज के लोग हैं । सब कुरमी, तेली, पटेल, मरार, धोबी एक हो जाते हैं । लड़ने के समय । हम लोग बीस घर के सतनामी हैं । लड़ाई होगी तो सोहन के साथ कौन कौन उतरेगा मैदान में । बरवट में बैठे सभी लोग एक स्वर में बोले हम सब साथ देंगे । यह रजामंदी की बात है । प्रेम का सौदा है ।

दूसरे दिन सतनमाी मुहल्ले में सभी चौकन्ने थे । दिन तनाव में बीता । शाम को अपनी भैंस को पानी पिलाने के लिए जमुना बाई बड़े तालाब में आई । यही समय तय हुआ था पैठू घुसने के लिए । सोहन ने हाथ हिलाकर इशारा कर दिया । भैस को घर की ओर हकालकर जमुना लगभग दौड़ते हुए सतनामी मुहल्ले के बड़े करन पेड़ के पास गई । वहाँ सोहन उसकी प्रतिक्षा कर रहा था । मिलते ही सोहन ने उसका हाथ थाम लिया और दोनों घर में जा घुसे । सोहन का बेटा गली में साथियों के साथ सूर खेल रहा था ।

सोहन ने उसे आवाज देकर घर के भीतर बुलवा लिया । उसने अपने बेटे बिजलाल को समझाया । बेटा यह जमुना अब तुम्हारी नई माँ है । तुम अब रिंगनी में अपने चाचा के पास रहकर पढ़ना अभी कापी किताब धर लो । पोसूदास तुम्हें रिंगनी छोड़कर आयेगा । बिजलाल इस निर्णय के कारणों को समझ रहा था । वह इतना सज्ञान हो चुका था । बिजलाल ने कहा – ददा, रिंगनी से हमारा गाँव खरखरा पास में ही तो है । पढ़ लूंगा । आप चिंता मत करो । कहते हुए उसने जमुना को पांव छूकर प्रणाम कर लिया । कुछ देर बाद पोसूदास उसे लेकर रिंगनी गाँव चल गया । और जल्दी ही सब बताकर वापस खरखरा आ गया । रात जैसी रात थी । सोहन और जमुना की यह रात अनोखी भी थी और जानी पहचानी भी । सोहन को पल पल की खबर मिल रही थी । यह रात जमुना के साथ सुख उठाने की रात नही थी । यह रात आने वाले दिनों की चुनौतियों के बारे में विचारते हुए गुजारने की रात थी ।

सहसा दरवाजे का सांकल बजा । पोसूदास ही था । सोहन ने उसे घर के भीतर आने को कहा । सोहन को पोसू ने बताया सबको पता चल गया है कि जमुना बाई तुम्हारे लिए पैठू घुस गई है । आग लग गई है खरखरा गाँव में । हम लोग भी तैयार हैं । लाठी, बल्ल्म, चतवार, सब्बल सब इकट्ठा कर लिए हैं । वे लोग गांव में बैठक कर चुके । बैठक में बड़े दाऊ ने सबसे पूछा कि हमारी जाति की औरत को सतनामी ने घर में घुसा लिया । उसे जिन्दा काटना है ।

सब तो चुपचाप सर नीचा किए बैठें रहे मगर रामा मंडल ने साफ कह दिया कि औरत को सतनामी ने घुसाया नहीं है । यह प्रेम का मामला है । औरत खुद घुसी है । मैं प्रेम में बाधा डालने का पाप नही करूंगा । मैं तुम्हारे साथ लड़ने नहीं जाऊंगा ।

चारों ओर से रामामंडल को लोगों ने घेर लिया बड़े दाऊ ने कहा – तुम प्रेमवाले हो इसका मतलब तुम सतनामियों के मित्र हो । अपनी जाति वाले की इज्जत तुम्हें प्यारी नहीं है ।
रामा ने कहा – औरत और मर्द की बस दो ही दुनिया में जाति है । जाति बड़ी होती तो जमुना बाई क्यों भागकर चली जाती, सोहन सतनामी के घर । रामा का इतना कहना था कि बड़े दाऊ ने फैसला सुना दिया कि रामा या तो सोहन को मारने हमारे साथ चले या अभी इसी समय गाँव छोड़कर कहीं आन गांव चला जाय । रामा ने कहा – गाँव छोड़ दूंगा मगर गलत करने वालों का साथ नहीं दूंगा ।
उसी समय इधर रामा गांव से निकलकर अपने ननिहाल नंदौरी गांव की ओर निकला और बड़े दाऊ की ललकार पर सब वहीं बीच गांव में रूक गए ।
पोसूदास ने बताया कि सोहन तुम्हें जान से मारकर जमुना को घसीटते हुए ले जाने की योजना बनी है इसलिए हम मुहल्ले भर के लोग रात भर पहरा देंगे । लाठी सब्बल लेकर ।
सोहन की सुरक्षा की खबर से बड़े दाऊ का दल अपने-अपने घरों में वापस चला गया । लेकिन तीसरे दिन घर में घुसकर सोहन सतनामी को इतना मारा गया कि उसके हाथ पांव सब टूट गए और चार दिन बाद वह गुजर गया । जमुना को घसीटते हुए तालाब के पास के मरीकटान के पास शमशान में ले जाकर जिंदा जला दिया गया ।
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बिजलाल अनाथ हो गया मगर रिंंगनी वाले चाचा सुबलू ने उसे चौथी तक पढ़ने के लिए तैयार किया । चौथी पढ़ लेने के बाद बिजलाल गोढ़ी के मिडिल स्कूल में दो साल पढ़ा । फिर रिंगनी वाले कलाकार बुलवाराम यादव से प्रभावित होकर नाच पेखन करने लगा । वह लोरिक चंदा नाटक दल बनाकर गांव गांव जाने लगा । पंथी दल भी उसका बहुत लोकप्रिय था । इस वजह से बिजलाल की पढ़ाई छूट गई । कुछ दिन बाद समेलाल दाऊ ने बाना गाँव की एक विधवा को चूड़ी पहना लिया था । बाना गाँव की सजातीय विधवा रमौतिन बाई तब पचीस बरस की थी । समेलाल दाऊ पचास पार कर रहे थे । रमौतिन का एक बेटा पहले पति से भी था समेलाल दाऊ की पहले पत्नी का बेटा सुकलू अब पन्द्रह बरस का हो गया था ।
समेलाल ने उसके पहले बिहाता से जन्मेें बेटे के साथ रमौतिन को स्वीकार किया । दस एकड़ जमीन रमौतिन के दस साल के मुरहा पोटरा बेटा कुंजलाल के नाम समेलाल ने लिख दिया । अब समेलाल के दो बेटे हो गए सुकलू और कुंजलाल । रमौतिन के आने के बाद समे दाऊ के घर में रौनक लौट आई । नौकर चाकर सब रमौतिन से हुकूम लेकर ढंग से काम करने लगे ।

रमौतिन ने एक दिन ढाबा गांव में रिंगनी वाले कलाकार बिजलाल का नाच देखा । रमौतिन के साथ समेलाल दाऊ और खरखरा के बहुत सारे लोग नाचा देखने ढाबा गए । लोरिक के रूप में 20 बरस के बिजलाल की कला देखकर वह बहुत प्रभावित हो गई । समेलाल को मंच में जाकर दो सौ रूपया ईनाम में देने के लिए रमौतिन ने कहा । समेलाल दाऊ रमौतिन का कहा काट नहीं पाते थै । मन मारकर मंच पर गए और बिजलाल को 200 रू का ईनाम देकर लौट रहे थे कि बिजलाल के दल की नर्तकी ने गीत गाकर उनका आभार माना ।

खरखरा के रहइया ये
समेलाल दाऊ ओकर नाव हे गा
आके बिजलाल ल सनमान दीस
कतेक सुन्दर ओकर भाव हे ग ।

अर्थात् समेलाल दाऊ खरखरा गाँव के रहने वाले हैं । उन्होंने दो सौ रूपया कलाकार बिजलाल को पुरस्कार स्वरूप दिया । धन्य हैं ऐसे पारखी दाऊ उनका हृदय भाव से भरा हुआ है ।
इस आशीष को सुनकर गाँव भर के लोग ताली बजाने लगे । समेलाल दाऊ थोड़े लड़खड़ा से गए । लेकिन कार्यक्रम रात भर चला । नाचा देखकर अपने गांव लौटते हुए रमौतिन ने बिजलाल को सुबह खरखरा आकर चाय पीकर जाने का न्यौता दिया ।

सुबह बिजलाल अपने साथियों के साथ रमौतिन गौटनिन के घर गया । गौटनिन ने अपने हाथ से भजिया बनाकर खिलाया । सबकों चाय पिलाने के बाद रमौतिन ने कहा- बिजलाल तुम मेरे बेटे के समान हो । तुम्हारे बाप की हत्या हुई मैं जानती हूँ । मगर वह सब विधाता ने लिख दिया था । मेरी पहली सौत अगर तुम्हारे बाप के घर नहीं घुसती तो वह कांड नहीं होता ।
यहाँ हमारे खेतों से लगी तुम्हारी जमीन है । तुम रिंगनी से खरखरा आ जाओ । यहाँ बेटा अपनी खेती बाड़ी सम्हालो । मैं तुम्हारा दुख जान सकती हूँ बेटा । हमें दुख से लड़कर जीना और जीतना चाहिए । तुम बिजलाल खरखरा के लाल हो । तुम ऐसे मर्द की औलाद हो जिसने प्रेम को मान देने के लिए जान दे दी । मेरी सौत मर गई मगर उसने भी मन के खिलाफ जीना स्वीकार नहीं किया । तुम अपने गांव से प्रेम करते हो तभी तो यहाँ नाचने आए । अब यहीआ जाओ । राज रसियत सम्हालो । डरकर भागने से बेहतर है लड़कर जीना । तुम तो वीर लोरिक बनतो हो । मंच पर जिसका जीवन जीते हो उसी की तरह बनो भी । मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है बेटा ।

बिजलाल ने न कहा न ना । वह सबसे जय जोहार कर रिंगनी के लिए निकल पड़ा । लेकिन रमौतिन की बात वह भूल नहीं पाया । अपने चाचा के कहने पर उसने वही किया जो रमौतिन गौटनिन ने कहा था । चाचा के परिवार के साथ वह अपने मूल गाँव खरखरा आ गया । पूरे आत्मविश्वास और तैयारी के साथ मुहल्ले वालो ने उसका स्वागत किया । खेती बाड़ी की सार सम्हाल दूसरों के सहारे अधिया में होती थी । अब बिजलाल ने स्वयं नौकर लगाकर खेती करना प्रारंभ कर दिया ।

उस साल फसल भी खूब हुई । नवम्बर में चार गांवों के सतनामियों को बुलाकर बिजलाल ने अपने मुहल्ले में जयस्तम्भ अर्थात जैतखंभ स्थापित करने का संकल्प लिया । रमौतिन को उसने एक साड़ी भी भेंट किया । साड़ी भेंट कर उसने आशीष मांगते हुए कहा – दाई छाहित रहिबे सदा । रमौतिन उससे आदर पाकर रो उठी ।

जमीन मुहल्ले के मुख्य चौक में थी ही । दस गांव के पंथी कलाकारों को आमंत्रित कर स्थापना समारोह सम्पन्न कराया गया । जोड़ा जय स्तंभ की स्थापना हुई थी ।
खरखरा गांव के लिए यह नई बात थी । सतनामी तो सदा से गाँव में थे लेकिन जय स्तम्भ पहली बार स्थापित हुआ था । वह भी बिजलाल के संकल्प के कारण । गाँव के पिछड़े समूह में थोड़ी चिन्ता भी हुई कि अगर ऐसा ही सब चला तो जाने आगे क्या हो ।

कहीं बिजलाल अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए तो यह सब नहीं कर रहा है । बिजलाल तक भी उनकी चिंता भी खबरें पहुंचती थी । मगर उसका ब्याह तय हो गया था । ढाबा गाँव के भक्कलदास की बेटी बिराजो के साथ उसका ब्याह हो गया ।

चाचा ने कहा बेटा अब तुम मुझे अपने गांव रिंगनी में जाने की इजाजत दो । तुम दोनों परानी घर सम्हालों । बिजलाल ने कहा – ‘चाचा एक साल और रूक जाओ । फिर चले जाना । एक साल में क्या हो जाएगा बेटा ? चाचा ने पूछा ।‘

बाबा जी की कृपा से एक पल में बहुत कुछ हो जाता है काका । इस साल 18 दिसम्बर को गुरू बाबा घासीदास की जयंती धूमधाम से मना लें फिर अगले बरस आप चल देना । चाचा ने सहमति दे दी ।
अठ्ठारह दिसम्बर को छत्तीसगढ़ में अमर संत गुरू घासीदास जी की जयंती का महापर्व मनाया जाता है । गाँव-गाँव में जयस्तंभ में पालो चढ़ाया जाता है । रोंठ और पूजा की रोटियां चढ़ाई जाती है जिसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है । बाबाजी के संदेशों को पंथी गीत के माध्यम से कलाकार जन जन तक नाच गाकर पहुंचाते हैं ।

समय पर सब वैसा ही हुआ व अठ्ठारहा दिसम्बर को खरखरा में मेला लग गया । बीस गांव के पंथी दलों के कलाकार आए । जब से देवदास बंजारे ने हबीब तनवीर के नाटक चरणदास चोर में पंथी गीत गाकर नृत्य किया है गावों में पंथी दलों को नई ऊर्जा मिल गई है । देवदास के दल के द्वारा गाया गया गीत चरणदास धन के चोरी तँय झन करबे लोकप्रिय है ।

खरखराका बिजलाल गाँव गाँव पंथी नाचने के लिए बुलाया जाने लगा । उसकी खेती बाड़ी शानदार थी ही । अपनी जीवन संगिनी बिराजो और पोसूदास काका के ऊपर उसने खेती का भार दे दिया । स्वयं कला साधना में लगातार डूबता चला गया । सब ठीक चल रहा था । एक साल यूँ ही बीत गया ।

अगले साल पानी कम गिरा । खरखरा के बड़े किसान और मजदूर भी इस आफत को ताड़ गए । पोसुदास ने कहा कि बिजलाल पानी अब नहीं गिरेगा । खेत में धान धीरे-धीरे सूखकर अइला रहा है । तुम थोड़ा लोगों को बुला लाओ । बातचीत करेंगे ।

शाम को सतनामी पारा में बैठक हुई । सभी ने कहा कि बड़े तालाब के एक कुलापे से पानी लेकर समेलाल दाऊ और कुरमी किसान अपनी फसल बचा रहे हैं । समेलाल के साथ दर्जन भर लोग दिन रात दोनों कुलापों पर पहरा दे रहे हैं । हमारे कुलापे को उन्होंने पत्थर मिट्टी से बंद कर दिया है । कहते हैं जान भले चली जाय पर सतनामियों को पानी ले जाने नहीं देंगे ।
बिजलाल ने कहा कि सब कल सबेरे मेरे साथ चलो बड़े तरिया । पानी पर हमारा भी हक है । दो कुलापे हैं खेत में पानी ले जाने के लिए । हमारे पुरखों का है वह एक कुलापा । हम भी अपनी फसल बचाने के लिए पानी ले जायेंगे ।

दूसरे दिन दोनों दल के लोग तालाब में जा पहुँचे । बिजलाल और पोसूदास ने अपने कुलापे में पहुंचकर मिट्टी हटाना शुरू किया था कि समेलाल ने ललकारा-अरे बईमान, तुम्हारे बाप का तालाब नहीं है । यह हमारा तालाब है । रूक जा नहीं तो बाप के पास पहुँचा देंगे ।

उसका इतना कहना था कि बिजलाल अपनी लाठी लेकर सामने जा खड़ा हुआ । दोनों तरफ के लोग लाठी बल्लभ लेकर सामने आ गए ।
समेलाल ने अपनेे नौकर से कहा मारो रे साले को । इतना सुनना था कि बिजलाल ने घुमाकर अपनी लाठी समेलाल के हाथ पर धरना चाहा ।
सतनामी पारा के सुरित ने बिजलाल की लाठी को पकड़ लिया और समेलाल पीछे हटकर बच गया । दोनों ओर के लोग सन्न रह गये । सहसा समेलाल की घरवाली रमौतिन अपने लड़के के साथ दौड़कर आई और बीचो बीच लेट गई ।

बिजलाल का हाथ भी रूक गया । रमौतिन ने कहा बेटा बिजलाल अब सबकी इज्जत तुम्हारे हाथों हैं । जो हो गया हो गया । अब आगे मत बढ़ । बात मान लो । उसकी एक बात से बिजलाल अपने साथियों सहित सर झुकाकर वापस चला गया ।

शाम तक गाँव में कुम्हारी थाने का अमला आ गया । भिलाई से एक बड़ा पुलिस अधिकारी भी आ पहुँचा ।
गाँव भर के लोगों को बीच गुंडी में बुलवाया गया । आसपास के गांव के लोग भी आए । खरखरा में मेला जैसा नया तमाशा शुरू हो गया । समेलाल, पोसूदास, बिजलाल, रमौतिन के साथ सभी बड़े-छोटे किसानों के सामने पुलिस के हाकिम ने कहा सब लोग सुन लो, आधा गांव बंधा जायेगा । मैं केवल समझाने के लिए उपरसे भेजा गया हूँ । साफ-साफ बताओ चाहते क्या हो ।

समेलाल अपने मुहल्ल्े के लोगों के साथ बैठा सुन रहा था कि सहसा धुनष पटेल ने उठकर कहा कि साहब बिजलाल अपने बाप का बदला लेने के लिए कमर कस चुका है । हम लोग भी चूड़ी नहीं पहने हैं । अब गाँव में लड़ाई होकर रहेगी । सहसा रमौतिन उठकर खड़ी हो गई । उसने कहा चूड़ी नहीं पहने हो तो जब बिजलाल की लाठी उठी तब तुम क्यों सामने नहीं आए । अगर सतनामी पारा के सुरित भाई ने सम्हाला न होता तो लाश तो गिर चुकी होती । उसने बिजलाल से कहा – बेटा बिजलाल अब तुम उठकर साफ बताओ ।

बिजलाल ने हाथ जोड़कर नमस्कार करने के बाद आकर कहा – साहब बदला वाली बात नहीं है । पहले जो कुछ हुआ उस कहानी को हम सब भूल चुके हैं । लेकिन वह मेरे बाप सोहन सतनामी का समय था । आज का समय हमारा है । बाप की जान मार से चली गई । एक जवान औरत को इन लोगों ने जला दिया । कानो कान आपके महकमें को तब खबर नहीं हुई । हम गड़े मुर्दे नहीं उखाड़ते । लेकिन मुझे रमौतिन गौटनिन ने माँ की तरह मया दुलार देकर इस गाँव में फिर बुलाया । हत्या करने से मैं बच गया साहब केवल रमौतिन दाई के टोकने से ही । पानी का हमारा कुलापा बंद है । पानी सबका है साहब । धान बचेगा तो हम बचेंगे । धान तब बचेगा जब हक का पानी हमें मिलेगा और हम भी तालाब का पानी अपने सतनामी कुलापे से खेतों में ले जायेंगे ।

यह लड़ाई का असली कारण है साहब । असल कारण है हक के लिए हमारा उठ खड़ा होना । बदला-सदला का यह ड्रामा असल समस्या से ध्यान हटाने के लिए किया जा रहा है । ये बात जरूर है कि या तो हम भी अपने हक का पानी लेकर रहेंगे या फिर जो होना होगा उसे भुगत लेंगे । लेकिन सर झुकाकर हम मरते हुए अपनी फसल की बरबादी जीते जी देख नहीं सकते । उसकी बात पर मुहर लगाने के लिए सतनामी मुहल्ले के सभी लोग जय सतनाम कहते हुए उठ खड़े हुए ।

बड़े पुलिस अधिकारी ने पाँच-पाँच आदमी दोनों दलों से लिया और अपने महकमें के साथ तालाब में जाकर उसने कुलापा खोलने के लिए सबसे कहा । सतनामी कुलापे को खोलने के लिए पहला हाथ रमौतिन ने लगाया और देखते ही देखते पानी अपने पूरे वेग से बिजलाल के खेतों की ओर बहने लगा ।

परदेशीराम वर्मा
एल.आई.जी. 18
आमदी नगर, भिलाई 490009 छत्तीसगढ़
7974817580, 9827993494

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