Sliding Message
Surta – 2018 से हिंदी और छत्तीसगढ़ी काव्य की अटूट धारा।

मनोज श्रीवास्तव के कुछ कवितायें

मनोज श्रीवास्तव के कुछ कवितायें

 प्रयास जारी है

कोई अदृश्य शक्ति, 
मुझे अर्जुन बनने से रोकती है, 
हर अच्छे कार्य पर बार बार टोकती है, 
माया की कलियुगी मूर्ति भी
मेरे अभ्यास में बाधा है, 
मेरा हर वांछित लक्ष्य,
अधूरा और आधा है,
किंतु प्रयास जारी है.
हर लक्ष्य को पाने का
प्रतीप धारा को अनुकूल बनाने का.
मुझे चाहिये बस,
कृष्ण का मार्गदर्शन,
क्या तुम वह कृष्ण बनोगे

जीवन का मूल

हे मानव! जीवन का मूल समझ, 

जनमा है तू क्यों धरती पर, 

मन में जरा विचार ये कर, 

ना उलझ माया के बंधन में, 

ये काँटें हैं ना फूल समझ, 

हे मानव! जीवन का मूल समझ।

जग के झूठे भ्रम में पड़कर, 

समय जो तूने खोया है, 

भ्रम के पतले धागे में, 

इक-इक माया पिरोया है.

थोड़ा समय है बचा सुधर जा

हुआ जो तुझसे भूल समझ, 

हे मानव! जीवन का मूल समझ।

कुछ भी नहीं रह जाता यहाँ, 

केवल सत्य ही रह जाता है,

रट ले नाम प्रभु का निशदिन, 

प्रभु ही सबको बतलाता है,

यह तन भी नहीं है तेरा, 

छोड़ दे मोह जीवन का

इसे तू भू का धूल समझ, 

हे मानव! जीवन का मूल समझ।।

खामोश आखें

होली आयी और चली गयी, 

पिछले साल से भली गयी, 

पर किसी ने देखा !

किसका क्या जला? 

मैंने देखा,

‘उसकी डूबती खामोश आँखें, 

जो उसकी पलकों को, 

भिगो रही थीं, 

और वह खड़ा, 

एकटक देख रहा था, 

‘होली को जलते’ 

जैसे उसे मालूम न हो.

‘खामोश आँखों के कारनामे !

प्राण नया हो

नये वर्ष की हर बेला पर, 

हम सबका मान नया हो, 

नयी क्रांति नयी चेतना, 

जग का फिर गुणगान नया हो, 

नये वर्ष की नयी हों बातें, 

मातृभूमि का गान नया हो, 

सरस हो जीवन और शांतिमय, 

व्यक्ति का हर मुकाम नया हो.

शिक्षा हो संस्कार हो सबमें, 

हर प्राणी में ज्ञान नया हो, 

प्रेम भाव से भरे हों जन, 

हर जीवन में प्राण नया हो।

सीख

बने-बनाये शब्दों पर तू 

क्यों फंदे !

कलम सलामत है तेरी,

तू लिख बंदे,

उम्मीद मत कर कि कोई,

आयेगा तुझे,

तेरे दर पे सिखाने,

इंसां को देख,

तू खुद सीख बंदे,

बुराई लाख चाहे भी,

तुझे फँसाना,

अच्छाई को पूज,

खुद मिट जाएंगे,

विचार गंदे ।

मत गिरने दो

मन में आत्मा में आँखों में, 

मीठी-मीठी बातों में, 

चरित्र गिर रहा है, 

मत गिरने दो।

स्नेह में ममत्व में भावनाओं में,

मूल्यों में सम्मान में दुआओं में, 

हर क्षेत्र हर दिशाओं में, 

चरित्र गिर रहा है, 

मत गिरने दो।

वादों में इरादों पनाह में,

विश्वास में परवाह में, 

चरित्र गिर रहा है.

वांछितों की चाह में,

मत गिरने दो।

आवाज में अंदाज में.

प्रजा में सरताज में,

कल में आज में.

हर रूप में हर राज में,

चरित्र गिर रहा है,

मत गिरने दो।

सुख दुख में त्यौहारों में.

एक में हजारों में,

मौन में इशारों में,

चरित्र गिर रहा है.

मत गिरने दो।

समीप में दूरी में,

बलात में मजबूरी में,

शान में जी हुजूरी में.

चरित्र गिर रहा है.

मत गिरने दो।

जमीन पर ऊँचाई में.

भीड़ में तन्हाई में

रोजी-रोटी की कमाई में.

चरित्र गिर रहा है.

मत गिरने दो।

हाट में बाजार में.

गेले में त्यौहार में

पवित्रता की आड़ में.

चरित्र गिर रहा है

मत गिरने दो।

नेतृत्व में अभिनय में,

सहयोग में संबंधों में,

नेत्रधारित अंधों में.

चरित्र गिर रहा है.

मत गिरने दो।

सड़कों में, पगडंडियों में,

मैदानों में,

हर जगह, हर पायदानों में,

चरित्र गिर रहा है.

मत गिरने दो।

रक्तों में, भक्तों में.

सशक्त और अशक्तों में,

रंगों में रिस्तों में

सतत् और किस्तों में

मेरी आत्मा का चित्र

इन दायरों में घिर रहा है.

मेरा भी चरित्र गिर रहा है.

बत्ताओं कैसे ? मत गिरने दें।

महफिल का भार

शादी की महफिल में, 

हाइलोजन के भार से,

दबा कंधा,

ताशे और ढोल का.

वजन उठाये हर बंदा,

हाइड्रोजन भरे गुब्बारे,

सजाने वालों का पसीना,

स्टेज बनाने गड्ढे खोदने का

तनाव लिये युवक,

चूड़ीदार परदों पर

कील ठोंकता शख्श,

पूड़ी बेलती कामगार,

महिलाओं की एकाग्रता,

कुसिीयों सजाते,

युवकों का समर्पण,

कैमरा फ्लैश में

चमकते लोगों की शान, कहीं न कहीं

इन सबका होना जरूरी है,

किसी की खुशी, किसी की मजबूरी है.

ये सभी मिलकर,

बनाते वादी हैं, 

इन सबकी खुशियों से ही, 

घूम से होती शादी है।

ओ! निश्छलता !

ओ निश्छलता !

क्यों नहीं हो मेरे मन में?

नवजात शिशु के,

रहती क्यों, मुखमंडल में, 

तुम क्यों रहती !

स्वच्छाकाश, 

चंद्र-तारे और धरातल में,

 तुम क्यों रहती!

हवा के झोंकों, 

गिरि की सुंदरता,

उन्मुक्त गगन में, 

क्यों नहीं हो मेरे मन में?

तुम क्यों रहती !

नदी की लहरों, 

फूलों के चेहरों और हरियाली में, 

क्यों रहती तुम !

माँ की ममता, 

दुआओं और खुशहाली में, 

हर वक्त हर घड़ी.

बचपन

बचपन को मैं देख रहा हूँ, 

विद्यालय का प्यारा आँगन, 

साथी-संगियों से वह अनबन, 

गुरू के भय का अद्भुत कंपन, 

इन्हीं विचारों के घेरे में, 

मन को अपने सेंक रहा हूँ, 

बचपन को फिर देख रहा हूँ, 

निश्छल मन का था सागर, 

पर्वत-नदियों में था घर, 

उछल-कूद कर जाता था मैं. 

गलती पर डर जाता था मैं, 

लेकिन आज यहाँ पर फिर से, 

गलती का आलेख रहा हूँ, 

बचपन को फिर देख रहा हूँ, 

चिर लक्ष्य का स्वप्न संजोया, 

भावों का मैं हार पिरोया, 

मेहनत की फिर कड़ी बनाई, 

उस पर मैंने दौड़ लगाई, 

वह बचपन का महासमर था. 

अब पचपन को देख रहा हूँ।

मैं कवि-सम्मेलन में जाता हूँ

मैं भी कवि सम्मेलन में जाता हूँ, 

भेद-भाव की दरिया को, 

पाटने की कोशिश में, 

सूरज के घर में चाँद का, 

संदेशा लेकर जाता हूँ, 

हाँ, मैं भी कवि सम्मेलन में जाता हूँ। 

खुशियों को ढूँढने निकला हूँ, 

मिल भी गयी दुखदायी खुशी,

दुखदायी खुशी के चक्कर में,

हसीन गम को भूल जाता हूँ, 

हाँ,मैं भी कवि सम्मेलन में जाता हूँ। 

ऐशो-आराम की जिंदगी मिली है,

आराम से सोता पर क्या करू, 

पहले हजारों अर्धनिद्रा से ग्रसित, 

बांधवों को सुलाता हूँ, 

हाँ. मैं भी कवि सम्मेलन में जाता हूँ। 

कार्यों को करने की प्रेरणा दी मैंने, 

कई सलाह भी दिये मैंने,

पर खुद काम से जी चुराता हूँ,

मैं भी कवि-सम्मेलन में जाता हूँ। 

जिसकी मदद से पहुंचा इस मुकाम पे, 

वही मेरे हाथ जोड़े खड़ा है, 

मैं खुश मूढ़ ! ऐहसानों का बदला,

इस तरह चुकाता हूँ, 

हाँ, मैं भी कवि सम्मेलन में जाता हूँ।

तुम्हारी दी इज्जत से रहा हूँ 

दिखावे की जिंदगी भी है मेरे पास, 

अपमान भी करता हूँ तुम्हारी, 

झूठे अहम के वश में, 

अपनी हैसियत भूल जाता हूँ।

मैं भी कवि सम्मेलन में जाता हूँ, 

दुनिया में शिकायतों का.

सिलसिला चलता ही है, 

मैंने बहुत शिकायतें की हैं तुम्हारी, 

अब माफीनामा भी फरमाता 

हूँ मैं भी कवि सम्मेलन में जाता हूँ।।

मन की आवाज

लिखने को तो लिख दूँगा कुछ भी 

लोग गंवारा करेंगे।

होगी गलती लिखने पर, 

हँसकर गलती सँवारा करेंगे। 

व्यर्थ बातों को

सुनकर बहक जाऊँ तो, 

सही रास्ते की ओर इशारा करेंगे।

सबका दुख हरने का बीड़ा उठाऊँ, 

तो दुखियों पर दया की 

दृष्टि भी डाला करेंगे।

समाजोद्धार करने को निकलें तो, 

शुभकामनाओं को वारा करेंगे!

कोई जुगनू भी आये कहीं से, 

उसे जुगनू से तारा करेंगे।

शत्रु करें मुझपर हमले तो. 

उसे मिलकर भी मारा करेंगे।

चुरा ले गया है सम्मान कोई. 

उसे फिर से हमारा करेंगे।

प्रथम बलि भी देता हूँ अपनी, 

मेरे बाद, प्राणों को हारा करेंगे।

सच्चाई

रेल की पटरियों पर,

दौड़ती जिंदगी,

हर छुक छुक की,

आवाज में, आती-जाती,

जैसे एक-एक साँस,

जीवन की सच्चाई को,

उजागर करते हुए,

कह रही हो.

कि आगे एक.

स्टेशन आ रहा है.

जहाँ गाड़ी,

हमेशा के लिए रूक जाएगी।

जीवनतंत्र

किस काम का है वह भोजन 

जो भूखे की भूख न मिटा सके, 

किस काम का है वह पराकम 

जो देश के लिए लहू न बहा सके, 

किस काम की है वह जवानी 

जो किसी के काम न आ सके, 

किस काम का है वह हृदय 

जो किसी के हृदय को न भा सके, 

किस काम का है वह सुंदर तन 

जो मन की सुंदरता न पा सके, 

किस काम की है वह वाणी 

जो दिया वचन न निभा सके, 

किस काम का है वह जीवन जो

 किसी को जीना न सिखा सके।

भाईचारा

इस जीवन में सबको जल्दी,

रहता है हर पल,

कोई कहता है आज ही सब कुछ,

कोई कहता है कल,

जाना सबका तय है एक दिन,

कौन यहाँ भुजबल ?

पुण्य कमाले इस जीवन में, 

सबसे मिलकर चल।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अगर आपको ”सुरता:साहित्य की धरोहर” का काम पसंद आ रहा है तो हमें सपोर्ट करें,
आपका सहयोग हमारी रचनात्मकता को नया आयाम देगा।

☕ Support via BMC 📲 UPI से सपोर्ट

AMURT CRAFT

AmurtCraft, we celebrate the beauty of diverse art forms. Explore our exquisite range of embroidery and cloth art, where traditional techniques meet contemporary designs. Discover the intricate details of our engraving art and the precision of our laser cutting art, each showcasing a blend of skill and imagination.