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बाल साहित्य (कविता संग्रह):एक घोंसला चिड़िया का -प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

बाल साहित्य (कविता संग्रह):एक घोंसला चिड़िया का -प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

31.होगी गरमी की छुट्टी

कुछ दिन होगी अभी पढ़ाई ,
फिर गरमी आ जायेगी।
होगी गरमी की छुट्टी ,
हम कहीं घूमने जायेंगे।
यात्रा से कितना मिलता है ,
ज्ञान हमें जीवन का।
यात्रा देशाटन भी है ,
रूप एक शिक्षण का।

32.चित्रकार नन्हा सा कीड़ा

चित्रकार नन्हा सा कीड़ा
है वह राकेट जैसा।
जिधर जिधर चलता था वह ,
अपने चिन्ह छोड़ता।
बरसाती मौसम में जाने ,
यह कहाँ से बाहर आ जाता ,
धीमे धीमे चलता है यह ,
अपनी धुन में सदा रेंगता।
कभी वृक्ष पर , कई पर
यह सदा रेंगता रहता।
यह चलता फिरता रहता,
चित्रकार नन्हा सा कीड़ा
है वह राकेट जैसा।

33.फूलों की घाटी में

फूलों की घाटी में फिर से
चलो घूम कर आयें।
वहां हज़ारों दिखें तितलियाँ ,
हम उनको दोस्त बनायें।
एक अलग दुनिया है उनकी ,
घाटी में फूलों की ,
सिर्फ वहाँ पर बातें हैं फूलों की ,
एक अलग दुनिया है उनकी ,
तितली , भंवरों , फूलों की।

वहाँ जुड़ेंगे हम भी चलकर
प्रकृति की सूंदर कृतियों से।
और मिलेगी हमें प्रेरणा ,
प्रकृति की सूंदर कृतियों से,
भंवरों के गुंजन से।
फूलों की घाटी में फिर से
चलो घूम कर आयें।

34.धीरे से सूरज निकला

धीरे से सूरज निकला ,
हुयी गुनगुनी कोमल धूप।
कई कबूतर उड़ आये ,
दिखा सुबह का सूंदर रूप।
एक सुनहरी छटा मनोरम
धरती पर छायी है ,
कलरव करते कितने पक्षी ,
कुछ बात बताने आये हैं।
दिन का सबसे अच्छा होता ,
कहते हैं यह यह प्रात प्रहर।
चलो घूम लेते हैं थोड़ा ,
फिर लौटेंगे अपने घर।

35.लहरें भी तो देखो कैसे

कछुआ बैठा सोच रहा कुछ ,
तालाब की सुंदर लहर देखता।
सोच रहा है देखो कब वह ,
खरगोश दुबारा आये।
हार गया था दौड़ में हमसे ,
शायद वह भी सोच मगन है।
परिश्रम अगर निरंतर होगा ,
तो लक्ष्य हमेशा मिल जायेगा।
लहरें भी तो देखो कैसे ,
शीघ्र किनारा छू लेती हैं ,
ये भी तो चलचलकर
हमें प्रेरणा देती हैं।

36.सुबह हो आयी

ओस खिलखिलाई ,
कली मुस्करायी।
आँख झिलमिलाई ,
सुबह हो आयी।
गूँज रहे गीत ,
जीवन से प्रीत।
प्रीत खुश दिखी ,
प्रकृति ही तो मीत ।
ओस खिलखिलाई ,
कली मुस्करायी।

37.झील के किनारे

आओ फिर चलें
एक बार फिर
झील के किनारे
जहाँ जल स्थिर।

असंख्य मछलियां
आ गयी किनारे ,
जाने इतने दोस्त
हमें मिल पुकारें।
आओ फिर चलें
एक बार फिर
झील के किनारे
जहाँ जल स्थिर।
सोचो प्रकृति
क्या कह रही ,
फिर उसे सुनें
थोड़ा तो गुनें।
आओ फिर चलें
एक बार फिर
झील के किनारे
जहाँ जल स्थिर।

38.ऐ बसंत में उड़ते बादल

ऐ बसंत में उड़ते बादल ,
रुको दोस्त, मत जल बरसाना।
देखो कितने फूल खिल रहे ,
हम पर न तुम बूँद गिराना।

थोड़ा अभी और रुक जाओ ,
वर्षा ऋतु में नीर गिराना ,
हम सब भी खेलेंगे ,
जाओ दोस्त जरा सुस्ताना।

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