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यायावर मन अकुलाया-12 (यात्रा संस्‍मरण)-तुलसी देवी तिवारी

यायावर मन अकुलाया-12 (यात्रा संस्‍मरण)-तुलसी देवी तिवारी

यायावर मन अकुलाया (द्वारिकाधीश की यात्रा)

भाग-12 माउण्‍ट आबू का सैर

-तुलसी देवी तिवारी

यायावर मन अकुलाया  भाग-11  माउण्‍ट आबू का सैर
यायावर मन अकुलाया भाग-11 माउण्‍ट आबू का सैर

माउण्‍ट आबू का सैर

गतांक- भाग-11 आबूरोड अम्‍बेजी का दर्शन

अम्‍बेजी की आरती में सम्मिलित होना-

अगले दिन (8.10.16) ब्रह्म मुहुर्त में उठकर हम सभी ने नित्य क्रिया निबटाई, आवश्यक दवाइयाँ लेकर मुँह अंधेरे माँ के दरवाजे पर जा खड़े हुए। उस समय तक साढ़े पाँच बज चुके थे। हमारे आगे कुछ लोग ही खड़े हो पाये थे। समय से आरती प्रारंभ हुई। हम लोगों ने अच्छी प्रकार माँ की छवि रुपी जीवन रस का नेत्रों से रसपान किया ।

आस्था के प्रति नतमस्तक हुई –

जब हम लोग दर्शन करके बाहर आ रहे थे तो मैंने देखा कि एक कृशकाय व्यक्ति लगभग पौन बोरी अनाज लेकर प्रवेशद्वार के बगल में बैठा है, वह इधर-उधर देख रहा है। माजरा समझ में नहीं आया उसके कपड़े पुराने और मैले कहे जाने लायक थे, उससे पूछने का अवसर नहीं था, मुझे अपने साथियें के आगे निकल जाने का भी डर था। मैंने देखा कि हमारे दल के लोग चाय पीने लगे हैं ,धीरे से उसके पास पहुँच कर नमस्कार किया और उसके खिल उठे चेहरे की ओर देखते हुए पूछ लिया–’’ मोटा भाई इसमें क्या हैं ? आप यहाँ बैठे हो मंदिर वाले कुछ कहेंगे नहीं?’’
’’ यह चावल है , मेरे पास एक छोटा सा खेत है, हर साल उसमें अपनी माँ के लिए धान बोता हूँ बेन जी, जब यहाँ पहुँचा कर जाऊँगा तब घर में नये अनाज से भोजन बनेगा।’’ उसकी आस्था के प्रति नतमस्तक हुई मैं अपने मन को टटोलने लगी क्या मेरे पास भी वह है?
दीदियों के लिए चाय और मेरे लिए कॉफी आ गई थी।

माउंट आबू प्रस्‍थान-

वहाँ से हम लोग ब्राह्मण धर्मशाला आये, अपना- अपना सामान बांध कर पहले ही रख चुके थे, उसे बाहर निकाला गया। त्रिपाठी जी बिल पटाने गये। तिवारी, शर्मा जी ऑटो करने लगे हेमलता बेदमति को संभाले नीचे उतरी, मैं देवकी दीदी को सहारा दिये, माया और प्रभा दीदी अपना-अपना सामान लिए नीचे उतरे तो देखा कि वैष्णव जी सावित्री दीदी के साथ पहले से उतर कर हमारा इंतजार का रहे हैं। दो ऑटो में बैठकर हम लोग अंबाजी बस स्टेण्ड पहुँचे । माउंट आबू जाने वाली बस अभी आई नहीं थी, हम लोग भीड़ भरे प्रतीक्षालय में जगह बनाकर बैठे। त्रिपाठी जी टिकिट लेने गये ।

लेखिका का धर्म –

मैंने अपने चारों ओर नजरें घुमाईं । एक लेखिका का धर्म है न अपने आस-पास की खबर रखना। पत्थर की बेंचों पर शरारत करते बच्चे, ऊँघते बुजुर्ग, घूंघट के अन्दर से नैन मटकाती राजस्थानी युवतियाँ, पास में ही स्थित पान की दुकान से लेकर पान खाते, बीड़ी सिगरेट से धुँआ छोड़ते युवक, कपड़े गीले करते और स्तनपान करने की जिद्द में माँ के आंचल में लोट-पोट करते छोटे बच्चे, नये जमाने की लडकियाँ, अपने छोटे-जिस्मदर्शी वस्त्रों को छेदती नजरों से बेखबर मोबाइल पर कुछ देखती। अनजाने ही मेरे होठों पर मुस्कान खेल गई कई वर्ष पहले जब हम रोडवेज की बस से यात्रा करते थे, और आज के युवक मेरे पुत्र जब गोद में थे, यात्रा के समय अपना भी यही मंजर हुआ करता था।

बीड़ी सिगरेट के धुएं से मेरी तबियत खराब होने लगती है, सिर दर्द आौर उल्टी शुरू हो जाती है, वही यहाँ भी हुआ। अपना सिर दोनो हाथों से दबाये आँखें बंद किये मैं बस आने की प्रतीक्षा करती रही। फल वाले केला आदि बेच रहे थे, प्रतीक्षार्थी खा-खाकर आस-पास फेंक रहे थे। कई जगह पान की पीक भी अपना रंग बिखेर रही थी, लग रहा था यह इंतजार जल्दी खत्म हो तो अंबे माँ की कृपा समझो। लगभग ग्यारह बजे बस आई और बारह बजे हम लोग अंबाजी को प्रणाम करके माउंट आबू के लिए चल पड़े।

माउंट आबू -प्राकृतिक सौंदर्य से सराबोर

पहाड़ी सर्पिले रास्ते ,एक ओर पहाड़ तो एक ओर गहरी खाई। बस की गति धीमी थी। कई स्टाप पर उसे रुकना पड़ा। हम लोग दो बजे के लगभग माउंट आबू पहुँचे। बस स्टाप के समीप ही वीना होटल में रुके। माउंट आबू राजस्थान में है। जहाँ प्रदेश कां अधिकांश हिस्सा मरुस्थल है, जहाँ रेत के बड़े-बड़े मैदान औेर टीले ह, वहीं इनके पीछे दक्षिणी -पश्चिमी अरावली पर्वत पर स्थित आबू पर्वत प्राणीमात्र को प्राणघाती गर्मी से राहत देता है अनेक आकृतियों वाले पर्वत शिखर आदमी का मन हर लेते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से सराबोर यह भूमि तपस्वियो की तपःस्थली रही है।

माउण्‍ट आबू पौराणिक दृष्टिकोण से-

इसका जन्म ही परोपकार की भावना से हुआ – पुराणों की माने तो जब शिव जी के भक्त यहाँ नहीं रहते थे तभी महर्षि वशिष्ठ यहाँ तपोरत थे, एक दिन यहाँ के एक गढ्ढे में मुनि की कामधेनु गाय गिर पड़ी अन्य .ऋषियों ने अपने तप के प्रभाव से सरस्वती नदी की सहायता से गाय को बाहर निकाला, लेकिन गढ्ढे में पानी भर जाने से आये दिन उसमें कोई न कोई गिरने लगा। इस कष्ट से रक्षा करने के लिए वशिष्ठ मुनि ने शंकर जी से प्रार्थना की । शंकर भगवान् की इच्छा जान कर कैलाश पर्वत ने नंदी वर्धन की सहायता से वहाँ एक लम्बी चौड़ी और मोटी दीवार उठा दी जो अर्बुदाचल पर्वत कहलाया । वही आज का आबू पर्वत है। हिमालय के अंग कैलाश ने जन्म दिया इसलिये इसे हिमालय का पुत्र भी कहा जाता है। कुछ इतिहासकार अरावली को हिमालय से भी पुराना मानते है। कहते हैं पहले यह अस्थिर था जिसके कारण जहाँ मन हो वहाँ जाकर बैठ जाता था, जिससे वहाँ निवास करने वाले प्राणियों की जान पर संकट आ जाता था । भगवान् शंकर ने इसे स्थिर करने के लिए पैर से प्रहार किया, उनके पांव का अगला भाग अब भी आबू पर अंकित है, वहीं अचलेश्वर महादेव का भव्य मंदिर बना हुआ है। आबू अर्बुदाचल का ही बिगड़ा रूप है।

माउण्‍ट आबू इतिहास के पन्‍नों में-

पहले यहाँ के मैदानों में बहुत सारे झरने बहते थे। नदियों का मार्ग था यह। अतः पर्वत की चोटी पर बने किला में भी अधिक समय तक रहना मुश्किल था। सम्राट चन्द्रगुप्त के समय आये चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इसका वर्णन किया है। अशोक के समय से लेकर गुप्तकाल तक आबु पर्वत की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई थी। परमार काल में इसका विकास अपने पूरे शबाब पर था। यह आबू पर्वत के इतिहास का स्वर्ण युग था। 13वीं सदी तक परमारों ने यहाँ पर राज किया। उस समय यहाँ अनेक कलात्मक निर्माण हुए। यहाँ रह कर परमारों ने गुजरात, उदयपुर, एवं जालौर से लड़ाई लड़ी। अपना राज्य दक्षिण में नर्मदा तट से पश्चिम में पाकिस्तान स्थित राजकोट तक विस्तृत कर लिया था। देवड़ा चौहानो के बाद कुछ काल तक राणा कुंभा ने भी यहाँ राज्य किया। कर्नल जेम्स टाँस ने सन् 1822 में इस स्थान का पता लगाया। वह पहला योरोपियन अधिकारी था जिसने आबू को देखने का सौभाग्य प्राप्त किया था। स्वतंत्रता के बाद इसका कुछ भाग मुंबई के साथ मिला दिया गया था। जो 1956 तक बनासकांठा जिले में रहा। सन् 1956 में राज्य पुर्नगठन आयोग ने इसे फिर से पहले की तरह राजस्थान में मिला दिया, अब यह राजस्थान के सिरोही जिले का एक उपखंड है। जो आबू नगर निगम की देख-रेख में विकसित हो रहा हैं ।

हरियाली और खनिज पदार्थों से भरे हुए इस क्षेत्र को राजस्थान का स्वर्ग कहा जाता है। यहाँ पहुँच कर एक प्रकार की प्रसन्नता का अनुभव हुआ। यहाँ ठंड लग रही थी, हमने चित्तौड़गढ़ वाली रजाई निकाल ली । हाथ पैर धोकर तैयार हुए थे कि साथियों ने भोजन के लिए बुला लिया । बस स्टेण्ड के पास एक शाकाहारी होटल देख आये थे साथी लोग । हमारा दल वहीं पहुँचा। वहाँ पहले से भी भीड़ थी। हम लोग भोजन की प्रतीक्षा में बैठे आपस में बातें करते रहे। इतना ही अच्छा हुआ कि यहाँ दाल सब्जी में चीनी नहीं थी। खाते -पीते 3.30 बज गये।

माउझट आबू का सैर-

राजस्थान में रेत के बड़े-बड़े मैदान और टीले हैं वहाँ दिन बहुत गर्म और रातें अपेक्षा कृत ठंडी होती हैं कटिली झाड़ियों एवं कम ऊँचाई के पेड़ होते है । इन सब की दूसरी ओर दक्षिण-पश्चिम में अरावली पर्वत माला पर बसा यह क्षेत्र प्रकृति की अनोखी संरचना है। हमने थोड़ा आराम किया और साढ़े चार बजे ऑटो में बैठ कर घूमने निकल गये। यहाँ की सड़के चौड़ी और चिकनी हैं, कोई ऐसी भीड़-भाड़ भी नहीं थी जिसके कारण मन को बेहद सुकून मिल रहा था।

नक्खी झील –

सब से पहले हम लोग नक्खी झील गये । शाम का समय, चारों ओर हरयिली, ठाठे मारता जल उस पर तैरती नौकाएं, लोगों के प्रफुल्लित चेहरे , घर गृहस्थी की कोई चिंता नहीं ,चारों ओर प्रकृति का खूबसूरत नजारा , मन खुशी से बावला मात्र इसलिए नहीं हुआ कि मैंने संस्मरण हेतु तथ्य संग्रह का एक काम अपने सामने रखा था। नक्खी झील के पास बैठने के लिए पत्थर की बनी बेंच पर हम लोग बैठे , वहाँ देश के विभिन्न भागों से आये लोग अपनी -अपनी वेशभूषा में, अपनी-अपनी भाषा में बातें कर रहे थे। पास में ही रेस्त्रां है , पॉपकार्न और मूंगफल्ली वाले हमारे सामने टेर लगाते बार-बार आ-जा रहे थे। मैंने एक पूड़ा मूंगफल्ली खरीदी और साथियों के साथ बाँट कर खाने लगी।

तोते का भविष्‍यवाणी –

एक सरदार जी हाथ में तोते का पिंजरा थामें एक बार हमारे सामने से निकले, उनकी दाढ़ी सफेद और कद लम्बा था ,वे दुबले-पतले उम्र दराज से व्यक्ति थे। वे हमे आकर्षित करने के लिए कुछ इस प्रकार कहते जा रहे थे–’’अपना भविष्य जानिए भाई साहब, पढ़ाई लिखाई ,रोजी रोजगार ,शादी ब्याह, प्रेम में सफलता, सब कुछ यह तोता बतायेगा भाई साहब । उन्होंने पिंजरे के ऊपर सफेद कागज पर लिखी इबारत पुट्ठे पर चिपका कर लटका रखा था– फीस मात्र 51 रूपये–शायद इसी इबारत ने सबको अपने भविष्य की ओर से उदासीन कर दिया था। मेरी नजरें उस व्यक्ति पर ठहर गई, मैंने विनोद के लिए ही उन्हें अपने पास बुलाया।

’’ सरदार जी फीस जरा कम कर दीजिए तो कुछ पूछें जी!’’
’’बहुत कम रक्खी है जी 51रूपये में कि होंदा जी, तोते का भी खर्च है भैण जी।’’ वे हमारे पास आकर बैठ गये। बड़े मोल-तोल के बाद 21रू. में बात पट गई ।
’’ अच्छा बताइये मेरा भविष्य!’’ मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया ।
’’ हाथ देखने वाले ठग होते हैं जी, मैं हाथ नहीं देखता, मेरा तोता गंगाराम बतायेगा आप का भविष्य, उन्होंने अपनी जेब से सफेद रंग के कुछ कागज निकाले जिन पर कुछ लिखा हुआ था। उन्होंने तोते के सामने सारे कागज फैला दिये।
’’ बता बेटा भैण जी के भविष्य में क्या है?’’
तोते ने एक कागज उठाया ,उसे देख कर सरदार जी कहने लगे—’’ आप का भविष्य बहोत अच्छा है भैण जी , आप पर लक्ष्मी जी महरबान् रहेंगी।, आप दिल का एकदम साफ है अपना खिला देता है दूसरे का आप के लिए हराम है। आगे भी संतान से मान- सम्मान मिलेगा, आप को गठिया से परेशानी है जी, कुत्ते को रोटी खिलाओ जी फायदा होगा जी। ’’ मैं उनकी बातें सुनकर हो-हो करके हँसती रही। मेरे बाद हेमलता जो मेरे पास ही बैठी थी उसने हाथ बढ़ा दिया, वह भी मजाक के मूड में ही थी। सरदार जी ने इस बार भी वही प्रक्रिया दोहराई और उसका भविष्य बताने लगे।
’’ तू तो बड़ी दिलदार है , किसी की कुछ परवाह नहीं करती, तूने जानबूझ कर शादी नहीं की, अब तेरी शादी टलने वाली नहीं है। तेरा मन बहुत साफ है , तूने कमाया बहुत लेकिन बचाया नहीं, तेरे से किसी का दुःख देखा नहीं जाता। अब तेरे पास धन भी आयेगा और खुशी भी।’’

’’ पूछ तो ओ मोर बेटा मन के बिहाव कब लगही?’’ देवकी दीदी को हर समय अपने बेटो के विवाह की चिंता लगी रहती थी सो वे भी बोल पड़ीं।
’’ बस अब यहाँ से जाते ही शादी वाले आ जायेंगे । अच्छा रिश्ता मिलेगा बी जी तैनू पुत्तर को ।’’ सबने उनसे कुछ न कुछ पूछा और सबने उन्हें 21-21 रूपये दिये। अब तक वे जमीन पर बैठे थे अब हमारी बगल में बेंच पर बैठ गये।

’’ भापे जी एक बात बताओ! आप के बाल-बच्चे हैं कि नहीं, इतनी उम्र में आप इतनी मेहनत करते हैं । दिन भर में कितनी दूर पैदल चलते हैं कितना बोलते हैं , पिंजरा लिए-लिए !’’ मैने उसकी आँखों में आँखें डाल दी ।

’’सब हैं भैण जी लड़का फौज में है ,लड़की की शादी कर दी, अपने ’कर’ में ठीक है जी, बहू है नाती है सब दित्ता है रब ने, मैंनू किसी से मांगना पसंद नहीं जी, रोज कम से कम 20 किलो मीटर साइकिल चलाता हूँ अपना और अपनी ’करवाली का खर्च निकाल लेता हूँ जी। ’’ और कुछ पूछने का मौका दिये बिना वे अपनी साइकिल की ओर बढ़ गये। हमारे दल के सभी लोग खुल कर हँस रहे थे क्योंकि सरदार जी ने एक भी बात ऐसी नहीं बताई थी नई हो। हाँ एक बात है उनकी वाक्पटुता गजब की थी उन्होंने एक भी ऐसी बात नहीं कही जिससे कोई जरा भी दुःखी हो।
मैंने सरदार जी से वह बात पूछ ली जो पूछना चाहती थी। अब उनकी पीड़ा मुझे समझा रही थी कि एक बूढ़ा आदमी अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए किस कदर अपने आप को मिटाने पर तुला हुआ है। झील पर तैरती नावें अब तट की ओर आ रहीं थीं जैसे हमारा जीवन अब अपने तट के निकट पहुँच रहा है। हर बुजुर्ग की एक ही कहानी है चाहे काश्मीर का हो या कन्या कुमारी का।

नक्‍खी झील का सौंदर्य-

नक्खी झील का बिस्तार बहुत दूर तक है, इसका जल गंगा और पुष्कर के समान ही पवित्र माना जाता है। उन्हीं की तरह इसका भी विशेष धार्मिक महत्व है। इसका जन्म ही पवित्र प्रेम की तड़प से हुआ है। लोक में प्रचलित कथा के अनुसार एक पहुँचे हुए सिद्ध महात्मा रसिया बालम को माउंटआबू की कुंआरी राजकुमारी से प्रेम हो गया। उन्होंने राजा से राजकुमारी के साथ अपने विवाह का प्रस्ताव रखा। ऐशो आराम में पली अपनी कन्या को बेघरबार योगी से ब्याहने की राजा की इच्छा नहीं थी किंतु योगी के कोप का भय भी कम नहीं था, राजा की समस्या का समाधान रानी ने किया , उसने सिद्ध महापुरूष के सामने शर्त रखी कि यदि आज सूर्यास्त से कल मुर्गा बोलने तक पर्वत से नीचे तक रास्ता बना दो और अपने नख की छोटी अंगूली से खेद रात भर में ही एक झील बना दो तब राजकुमारी का विवाह तुम्हारे साथ हो सकेगा। योगी ने रात भर में ही अपनी सिद्धियों का प्रयोग करके पहाड से नीचे तक रास्ता बना दिया। और अपने नख से एक बड़ा सा तालाब खोदकर काम पूरा ही कर रहा था कि रानी ने उसके साथ कपट किया उसने स्वयं मुर्गे की आवाज में बांग दे दी। योगी इससे बेहद हताश हुआ और अपनी कुटिया में चला गया। जब उसे रानी के कपट का भान हुआ तब उसने रानी और राजकुमारी को पत्थर बन जाने का शाप दे दिया , बाद में स्वयं भी अपने तेज बल से पत्थर की मूर्ति बन गया। यहाँ लोग कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने आते हैं। झील के बीच में एक फव्वारा है जो दूर से बहुत ही सुंदर दिखाई देता है। हम शाम ढलती देख सूर्यास्त दर्शन स्थल के लिए चल पड़े।

गांधी वाटिका –

नक्खी झील के तट पर ही गांधी वाटिका है जहाँ की शोभा और सुंदरता देखने योग्य है। यहाँ झील में जल विहार हेतु नावें किराये पर मिलती हैं हमने कई नावें देखी। आबू नगर पालिका द्वारा 1953 में निर्मित यह उपवन पर्यटको के लिए बहुत आराम दायक है। मैदान में दूब लगाई गई । इसके बीच में एक सुंदर फव्वारा और महावीर स्तंभ है जिस पर जैन धर्म के उपदेश अंकित हैं। प्रवेशद्वार के बाहर एक ओर कुछ ऊँचाई पर भगवान् बुद्ध की खूबसूरत प्रतिमा बनी हुई है जिसके नीचे एक सुंदर झरना बहता है।

श्री रघुनाथ जी का ऐतिहासिक मंदिर –

एक नजर संपूर्ण रचना पर डालते हम लोग पैदल-पैदल चल कर नक्खी झील के दक्षिणी-पश्चिमी तट पर आ गये। यहाँ उतर कर श्री रघुनाथ जी का ऐतिहासिक मंदिर एवं आश्रम देखा। इस मंदिर में 14वीं शताब्दी में वैष्णवाचार्य श्री रामानंद जी ने श्री रघुनाथ जी की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई थी। इसके पिछले भाग में राम कुंड और दो-तीन गुफाएं हैं। इन्ही में से एक राम गुफा में 1852-54 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने साधना की थी। सन् 1881 में स्वामी विवेकानंद भी इसी में ठहरे थे। इस मंदिर के उत्तर में एक अति प्राचीन शिवालय है, इन्हें दूलेश्वर महादेव कहते हैं। हमने देवाधिदेव को प्रणाम किया जिनकी कृपा कृपा के लिए ब्रह्मा विष्णु आदि देव भी हाथ जोड़े खड़े रहते है।

ननरॉक –

नक्खी झील के दक्षिण-पश्चिम में एक पहाड़ी पर एक चट्टान दिखाई दी जो हूबहू मेढक जैसी दिखती है। पता चला कि इसके आकर के ही कारण इसे टॉड-रॉक कहते हैं । प्रकृति की विचित्र कारीगरी देखकर मेरा मन मुग्ध हुआ जा रहा था। इस चट्टान पर से नक्खी झील और पूरे शहर का नजारा बड़ा ही शानदार दिखाई दे रहा था यहाँ तक पहुँचने के रास्ते में ही पुराने जमाने के राजाओं का महल जयपुर भवन भी पड़ा। शाम हो जाने के कारण हम लोग वहाँ नहीं गये। राजपूताने क्लब के टेनिस कोर्ट के पास और एक चट्टान है इसकी आकृति घूंघट काढ़े हाथ जोडे एक ईसाई साध्वी जैसी बन गई है । इसीलिए यह ननरॉक कहलाती है। बिजली गिरने से इसकी नाक टूट गई है जिससे आकृति कुछ बिगड़ सी गई है।
आबू पर्वत पर हवाओं के घर्षण से कई चट्टाने अनेक रूप धारण कर चुकीं हैं इनमें केमल रॉक,एलीफेंटा रॉक, नेकड रॉक, बुलडॉग रॉक,आदि बेहद प्रसिद्ध हैं ।

वैलेज वाक –

अब हम घने वृक्षों के बीच से एक पगडंडी से होकर ऊपर चढ़ रहे थे। यही पगडंडी जिसे वैलेज वाक कहते हैं, सनसेट पॉइंट तक जाती है। इसे यहाँ वैलेज वाक कहते हैं,कभी कर्नल वैलेज ने इसे खोजा था। वास्तव में यह एक अद्भुत् रास्ता है। हम उस जगह पहुँचे जहाँ से सूर्यास्त होते देख सकते हैं वहाँ बड़ी भीड़ थी। कई पत्थर और चट्टाने बैठने लायक हैं हम लोग थके तो थे ही जगह बनाकर बैठ गये। कुछ सिमेंट की सीढ़ियाँ दर्शकों के बैठने के लिए बनाई भी गईं हैं, यह पहाड़ी के अंतिम छोर पर है। यहाँ से हजारों फिट नीचे मैदान है। अब तक लाल पीले ,गोले के रूप में सूर्य जंगलों के पीछे अदृश्य होने लगा था। यह दृश्य बड़ा ही हृदयहारी था। हमने कन्याकुमारी में भी सूर्यास्त देखा है जहाँ सूर्य अरब सागर में खो सा जाता है, वैसी ही कुछ यहाँ भी सुखानुभूति हुई।

देव आंगन –

गगन मंडल से जब सिंदूरी लालिमा अदृश्य हो गई तब सभी लोग जो अब तक चुपचाप अपने ही आनंद में खोये हुए थे, धीरे-धीरे अपनी जगह से हिले। पगडंडी पर लोग चींटियों की लाईन की तरह नजर आने लगे, सब के रास्ते अलग-अलग थे। हम लोग घने जंगल से होते हुए देव आंगन आ पहुँचे।

यहाँ एक छोटे से मंदिर में भगवान् विष्णु की विशाल प्रतिमा है। प्रांगण में और भी अनेक मूर्तियों में एक भगवान् शंकर की ’त्र्यंवक’ तीन मुख वाली मूर्ति है। ऐतिहासिक शहर चन्द्रावती की याद दिलाते हुए देव आंगन की मूर्तियाँ और अवशेष अपने समय की वास्तु-कला का परिचय देते हैं।

तेजोमय सूर्य मंदिर –

इसके आगे तेजोमय सूर्य मंदिर है इस प्रचीन मंदिर में अश्वारोही सूर्य भगवान् की काले पत्थर की बहुत ही सुंदर प्रतिमा है, मदिर के स्तंभों पर दी गई जानकारी से लगता है यह 1147 ईशा पूर्व की हैं। हमने श्रद्धा पूर्वक प्रणाम किया। यहीं से नक्खी झील के पास गांधी बाटिका की दायी ओर स्वामी विवेकानंद उद्यान है। वह इस समय बिजली के वल्बों से जगमगा रहा था। फव्वारे के कारण इसकी शोभा और अधिक बढ़ गई है। इसे आबू नगरपालिका ने बहुत पहले बनवाया था।

नीलकंठ महादेव –

आगे प्राकृतिक शोभा से मालामाल एकांत में स्थित नीलकंठ महादेव का मंदिर मिला जहाँ प्राचीन वृहदाकार शिवलिंग स्थापित है। यह स्थान तपश्चर्या हेतु अति अनुकूल है। मंदिर में प्रणाम निवेदन करके जब हम लोग सड़क पर आये तो हमारे ऑटो वाले यहीं हमारी प्रतीक्षा करते मिल गये । हम लोग शहर की रात्रिकालीन शोभा देखते हुए वीना होटल आ गये। यहाँ भी मैं, देवकी दीदी, प्रभा दीदी, और माया एक कमरे में ठहरे थे। यहाँ ठंड अधिक थी उसकी तुलना में ओढ़ने के लिए कपड़े कम थे। हमने काउंटर पर जाकर और कंबल की मांग की तो उसने कह दिया कि धोबी के यहाँ गया हुआ है । हम लोगों ने अपने पास का बिस्तर निकाला ऐसे में चित्तौड़गढ़ वाली रजाई बहुत काम आई। हम चार महिलाएं एक साथ थीं बातचित होना तो स्वाभाविक था । घर की याद आने लगी। मैने देश भ्रमण के लोभ में अपने पति को घर में अकेला छोड़ा था। वैसे परिवार भरा पूरा है किंतु हम एक दूसरे के बिना अपने को अकेला ही कहते हैं। मन में कुछ उमड़ने घुमड़ने लगा, मैंने अपनी डायरी निकाल कर दो दिन में देखे गये स्थानों की मुख्य बातें नोट की और भी कुछ पंक्तियाँ उतर आई डायरी के पन्नों पर ,

हँसी-खुशी अपनापन,
मान- सम्मान जीवन का आरंभ, अंत,
छोटे- बड़े उत्सव त्यौहार,
परिपाटी का निर्वाह,
निज दायित्व ,
कामचोरी, चालाकी और मक्कारी,
हिंसा, अपमान और स्वार्थ,
बेइमानी , घात- प्रतिघात ,
और ईर्ष्या की आग।
भोज- भात , खान-पान,
कभी पूरी होतीं मुरादें
, कभी,आ जाता व्यवधान
जीवन के खेल ,
बच्चों की तुतली बातें ,
युवाओं की लापरवाहियाँ,
वृद्धों की हाय,- हाय,
कभी जब खुश होते,
लगा देते आशीर्वादों की झड़ी।
आती कभी हँसी,
कभी चुपचाप बहते आँसू,
सुबह-शाम आती रसोई से ,
बनते भोजन की सुगंध,
बच्चे बूढ़े सभी होते तृप्त,
कभी होता अपनों का अपनो पर ऐसा आघात,
कि उड़ जातीं स्वाभिमान की धज्जियाँ,
काया होती जख्मी,
आत्मा होती चोटिल,
जी भर जाता इस जग से,
हाथ उठते ईश्वर से मृत्यु मांगने के लिए,
दूसरे ही पल,
कई लोग मरहम लेकर आते,
बहुत सारा प्यार लुटाते,
देते जीने का संबल,
बाँधते पुनः नेह का बंधन,
घर अपना हर हाल में , होता है अपना
देखो जरा उसे दूर रहकर।

-तुलसी देवी तिवारी

शेष अगले भाग में- भाग-13 माँ कात्यायनी अर्बुदा देवी मंदिर दर्शन


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