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11 मुक्तक -वसुंधरा पटेल “अक्षरा”

11 मुक्तक -वसुंधरा पटेल “अक्षरा”

11 मुक्तक

-वसुंधरा पटेल “अक्षरा”

11 मुक्तक -वसुंधरा पटेल "अक्षरा"
11 मुक्तक -वसुंधरा पटेल “अक्षरा”

11 मुक्तक


(1)

कभी जब दुख मुझे घेरे व्यथा को संग मिल बाँटे।   
पथों के शूल मेरे जो स्वयं के हाथ से छाँटे।
नही भाई लखन सा अब यहाँ कोई जगत में जो,
कुपित होकर सभा में भ्रात हित मिथिलेश को डाँटे।

(2)

चहल पहल है फिर से लौटी बंद पड़े मयखानों की।
फिर से छलकी खुशियाँ देखो गुमसुम से पैमानों की।
अर्थव्यवस्था को बल देने गिरते पड़ते पहुँचे हैं,
मीलों लम्बी लाइन देखी मदिरा के दीवानों की।

(3) 

कभी भी केश नारी के यहाँ खींचे गए हैं जब।
रहा है भीम बोलो मौन भींचे मुठ्ठियों को कब।
किया जब भी दुशासन ने किसी नारी को अपमानित,
रुधिर से यह धरा उसके सदा सींचे गए हैं तब।

(4)  

सुबह क्या दोपहर क्या संग आठो याम रहता है।
बनाकर इस हृदय को प्रेम में निजधाम रहता है।
मधुर सुर बाँसुरी की जिंदगी यह हो गई तब से,
हृदय में साँवरा जबसे पिया धनश्याम रहता है।

(5) 

नमक हो तेज भोजन में नही फिर स्वाद रहता है।
खतम हो जाये गर विश्वास तो अवसाद रहता है।
शहद वाणी में हे मानव अगर तू घोल ना पाया,
कटुक वचनों से फिर रिश्तों में ना संवाद रहता है।

(6)

   
किया मुस्कान में शिशु के तेरा अहसास है ईश्वर।
हुआ दीनों की सेवा में तेरा आभास है ईश्वर।
तुझे मैं ढूँढती फिरती रही नाहक ही बाहर में,
जो झाँका स्वयं के भीतर मिला तेरा वास है ईश्वर।

(7)

सदानीरा बनी जग को सदा ही पालती है माँ।
हमें संस्कार दे साँचे में सच के ढालती है माँ।
कभी अपना निवाला भी खिला पाला जिसे माँ ने,
उसी बच्चे को जब बूढ़ी हुई तो सालती है माँ।

(8)

 
सरोवर प्रेम का नही सूखता जब नेह सच्चा हो।
है रिश्ता टूट जाता बीच में धागा जो कच्चा हो।       
भला कैसे डरे मीरा कोई विषप्याल पीने से,
जिसे मिल जाए प्रियतम प्रेम में कान्हा सा अच्छा हो।

(9)

रीतियाँ जालिम जगत की नारियों को छल गयी।
फूल जैसी मुस्कुराहट हाय किसको खल गयी।
इस जमाने ने कसम से इस कदर ढाये सितम,
हसरतें जितनी भी थी सब आँसुओ में ढल गयी।

(10)

दाग दामन के छुपाती कुछ न कहती नारियाँ।
पीर दुनिया के सभी चुपचाप सहती नारियाँ।
पाप करके घूमता जालिम जमाना देख लो,
मर रहीं निष्पाप होकर लाजवंती नारियाँ।

(11)


मुरली वाले मोहना की मैं दीवानी आजकल।
रातदिन नयनों में उसकी सूरत लुभानी आजकल।
बनके मीरा राधिका उसको मैं ढूँढूँ बावरी,
याद में उसकी बहे नयनों में पानी आजकल।

-वसुंधरा पटेल “अक्षरा”

9 responses to “11 मुक्तक -वसुंधरा पटेल “अक्षरा””

  1. Shlesh Chandrakar Avatar
    1. वसुंधरा पटेल Avatar
  2. Jyoti ratre Avatar
    Jyoti ratre
  3. KamleshKumarpatel Avatar
    KamleshKumarpatel
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  5. वसुंधरा पटेल Avatar

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