छत्तीसगढ़ी लोकगीत करमा- श्रीमती तुलसी तिवारी

छत्तीसगढ़ी लोकगीत करमा
छत्तीसगढ़ी लोकगीत करमा

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत करमा के शुरूवात अइसे होइस होही-

छत्तीसगढ़ी लोकगीत करमा – मनखे मन जब गोठियाये बोले ला नई सीखे रहिन, तभो अपन मन के दुःख-पीरा   अपन संगी मन ला जनाय बर  अपन बोंगरा के भीथिया म जइसे बनय तइसे चित्र बनावैं, कुछू नहीं त रो के हाँस के अपन मन के संसो ला हेरयं । अपन संगी जंउरिहा संग बांट के जींव ला हरू करयं। बोली भाखा सीखे के बाद अपन बोली म लय के साथ गाये गुनगुनाये लगिन । एक ऊपर एक लाइन बनत गय, अउ गीत बनत गय। एक खास जघा के बोली म बने गीत मन म ओही ठउर के मानुष मन के सुख- दु:ख चिरई चुरगुन, नदिया नरवा, रुख- राई काम बूता, नार- बियार, खेत-बारी, गरुआ बछरू के बरनन रहना सहज बात ऐ तेखरे पाय के अइसन गीत मन ला लोकगीत केहे जाथे। लोक साहित्य ह बेद-पुरान, रमायन महभारथ आदि के कथा कहिनी ले आधार सकेलथें काबर के कोनो कल्पना निराधार जनमें नई सकय।

जइसे- जइसे जिनगी के बिकास होइस, आनी -बानी के काम बूता, सोंच बिचार, ,तिहार-बार – देवता-धामी बाढ़त गिन, उनकर पूजा के बिधी- बिधान बनत गय अउ छत्तीसगढ़ी लोकगीत करमा के हिस्सा बनत गयं। लइका जनमें से लेके मनखे के मरघटिया म जा के भूइयाँ म सूतई तक सोरह संस्कार होथे, तेखर गीत , छट्ठी- बरही बर सोहर , बर-बिहाव म बिहाव गीत बन्नी- बन्ना, निंदाई गोड़ाई बर ददरिया , जांता पिसई बर जंतसार , तिहार बार म, होरी, बर होरे,  देवारी बर सुआ , भोजली बर भोजली , नेवरात बर देवी जस गीत गाये जाथे, तइसने करमा पूजा बर करमा गीत गाये अउ करमा नाचे जाथे। छत्तीसगढ़ के राज्य नृत्य के दर्जा पाये करमा गीत ला बारा महीना गाये नाचे जा सकथे, आज- काल त बड़े- बड़े मंच म करमा अपन सुघरई के रंग ला बगरावत हे।

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत करमा आय का-

करमा ह उरांव गोंड़ अउ कोरवा मन के खास गीत नाचा हे, अइसे एला जम्मों जात सगा गाथें नाचथें। ये गीत मन सिंगार रस म सुनइया ला बोरे बिन नई मानयं। संजोग अउ बियोग दूनों के अइसे गूंथना मिलथे जइसे सोन संग मोती गुंथाय होय। कइथें के काख्रम नांव के राजा रहय तइहा जुग म  ओकर राज म मुसीबत आगय रहै त अपन परजा मन ला नाचे गाये के हुकुम देइस, नाचत गावत अउ बाजा बजावत मुसीबत के सुरता भुला गय, अउ मुसीबत के दिन कट गय , तभे ले ये चलागत चलिस । अउ कई ठि किस्सा एकर संग जुड़े हावय , मोला लगथे के करम ही जीवन के आधार आय आदिवासी मन सहि के करमबीर आयं तेखरे ले करम के ही पूजा करथें , ओकरे ओट ले अपन जीवन अउ हिरदय के बिगड़े बने ला गोठियाथें।

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत करमा संस्‍कृति के चिन्‍हारी आय-

छत्तीसगढ़ी लोकगीत करमा ह छत्तीसगढ़ अउ झारखंड के मिझरा संस्कृति के चिन्हारी हे। सरगुजा म तो करमा अकादसी के दिन स्थानीय अवकास रइथे। वो दिन बन ले एक घौं टगिंया मार के करम रुख के डारा ला काटे जाथे, भूइंयाँ म गिरे के पहिलिच झोंक लिए जाथे। एला एक जघा भूइयाँ म गाड़ दिये जाथे जेला अखरा कहे जाथे। । चलन चलागत सही पूजा पसारी कर के दिन भर के उपासे बहिनी मन अपन भाई बर करम देंवता सो  बिनती करथें। ओकर बाद सुरू हो जाथे करमा गीत अउ मांदर के थाप संग नचकरिहिन मन के गोड़ म बंधाय घुंघरू के छन्- छन्।  जींव ह कतका बेर कहूँ गंवा जाथे गमें नी मिलै।

करमा गीत के तीन भाग होथे-

चेत लगहा सोंचे ले हर छत्तीसगढ़ी लोकगीत करमा के तीन भाग होथे-राग, टेक  अउ आड़। एमन ले नाचे के अधार मिल जाथे। येदे मन राग के नमूना हें-

  • अहो हे,अहो हे हे
  • ओ हा हे हे हे ।
  • आ हो हो रे हो
  • ओ हो हाय रे

गाये के तरीका के अनुसार करमा गीत के पाँच किसिम होथे-

गाये के तरीका के अनुसार छत्तीसगढ़ी लोकगीत करमा के पाँच किसिम होथे। नचकरहा मन के  रेंगना, मटकना, थिरकना ला आधार मान के किसिम बनाय गय हे। एक गोड़ ला निहरा के नाचथे तेला लंगड़ा कइथें झूम-झूम के गाथें तेला झूमर कइथे। लहक- लहक के गाथे तेला लहकी कइथें। ठाड़ होके गाथें तेला ठाढ़ा कइथें।  राग- रागिनी ला ले के गाथें तेला रागिनी कइथें। जधा भेद ले करमा गीत म भी फरक आ जाथे।

देवार करमा-

सिंगार रस वाले करमा गीत मन ला देवार करमा कहे जाथें। पूजा होय के बाद नारी-पुरूष मन एक दूसर के सामने लाइन बना के ठाड़ हो जाथें, नावा ओन्हा अउ फूल पत्ता कउड़ी कांसा के गहना गांठी ला पहिर के खोंपा म फूल खोंच के मोटियारी मन एक दूसर के हाथ म हाथ दे के नाचे गाये बर तियार हो जाथें, चेलिक मन घलो नावां कुरथा , धोतिया पहिर के कनिया म पटकू ला बांध के मूड़ ऊप्पर बंधे पागा म आनी- बानी के फूल खोंचे तियार हो जाथें। मंदरिहा मन कनिया म मांदर बांधे धीरे बानी थाप देथें तिहा नाचा सुरू हो जाथे , गवैया सबले पहिली सब देवता मन के पैलगी  बंदना ऽकरके उनकर असीरबाद लेथें—

जइसे-

हरे....ऽ...... ..ऽ. !सुमिरन करौं रे, एही         
 अंगनइया मा सुमिरन करौं ।
एक सुमिरौं में चंदा सुरूज , दूजे धरती अगास।
एक सुमिरन चारों देवता ला , गांव के गंवठिया, ठाकुर देवता रे!
हरे हरे....ऽ...... ..ऽ. !कलकत्ता के काली माई, समलपुर के समलाई
लाफा के बुढ़वा देव, छुरी के कोसगई। हरे हरे....ऽ...... ..ऽ.!

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत करमा आस्‍था के लोकनृत्‍य अउ गीत आय-

आस्था मय आदिवासी जीवन के दरसन करावत ये बिनय गीत म करमा गवइया अपन नित दिन सहारा करइया देवतामन के बंदन करत  कइथे—- करम देवता के पूजा के हूम हवन ले पवरित होय ऐ अंगना ले चंदा, सूरूज, धरती अगास,गाँव के ठाकुर देव,कलकत्ता के काली माई संबलपुर के समलाई दाई, लाफा गढ़ के बूढ़ा महादेव अउ छुरी के कोसगई दाई ला में ह बलावत हँ के आके हमर तिहार म अपन असीस देवव।

ये डहर कलकत्ता के कालीमाई अउ समलाई दाई के बड़ महत्तम हे, गाँव म कोनो सुभ काम आथे त सबले पहिली ठाकुर देव के पूजा होथे। ऐमन संकर भगवान् के रूप आंय।   अउ कई ठिन बंदना गीत हे  जला कई किसिम ले गाये जाथे।

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत करमा मया के चिन्‍हारी-

ऐ डहर मयारुक संगी के नांव नईं लैं ओकर जघा म कोनो ’ गोलिंदा जोड़ा, त कोनो जंवारा, चाहे गोंदा फूल कइके बलाथें।

जइसे-

मांदर के मोहनी म मोहाय बहुरिया अपन जीव के कल्लई ला अपन सास लंग कइके करमा नाचे जाय बर हामीकार करवावत हे, बड़ सुघ्धर गीत हे—

टपकि मांदर बाजे ,मोर जीव ह कइसे लागै।
खाल्हे पारा के मांदर ऊपर पारा बाजै,
टपकि..........
धर- धर सास मोरे कोरा के बलकवा,हमूं जाबो करमा नाचे ,
टपकि.................
कहाँ जाबे बहू ओ सास के पतोइया, रसदा म घेरही चंडाले,
टपकि........
मांदर के बाजा बड़ा नीक लागे घर मा छिन भर नई नीक लागै,
टपकि ............

खाल्हे पारा म करमा नाचा शुरू हो गय हे, मांदर के सोर सुनावत हे, मोला कोन जानी का होगय , एको कनि जीव नई लागऽथे, उहाँ जाय बर मंय बियाकुल हो गय हौं, लेवातो दाई चिटिकुन लइका ला धरौ मयं ह नाच के आत हं, ओकर गोठ ला सुन के सास ह कइथे– ’’अरे बहुरिया ! तंय ह हमर घर के मरजादा अस, कहाँ जाबे अतेक रात कन? कहूँ बदमास मन भंेट पारहीं अउ अकेल्ला पाके कुछू आन- तान कई दिही त काय करे जाही?’’

बहू ओकर बात डहर चेत नई करत हे अउ कहत हे–’’ हा दई! मांदर के आवाज ह कतेक नीक लागत हे दाई मोला कइसनो करके करमा गाये नाचे बर जान देवा ।’’

कतेक मादक हे मांदर बाजा मोटियारी अउ चेलिक अपन छोट- बड़ के लाज लिहाज ला भुला के अइसे रेंग दे थे, अखरा डहर जना- मना कखरों बस म होवयं ।

( अइसनेच बरनन भागवत् कथा म आथे जब किसन कन्हइया के बंसी बाजथे त गोपी मन चुल्हा ऊपर दूध, रोवत लइका, खुल्ला फइरका छोड़ के बही सही ओ लंग हबरथें जिहाँ

 रास के तियारी होवत रइथे।)

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत करमा ह परेम पिरीत के गीत आय-

करमा  ह परेम पिरीत के गीत गाथे अउ जहाँ मया के बंधना होही उहाँ मयारुक ला लोभाय बर सजना संभरना होबेच करही,रीतिकाल सही नीचे लिखे करमा गीत म गोड़ मूड़ सिगार के बरनन देखे के लइक हे–

जइसे-

होरे ....ऽ...... ..ऽ  ....होरे घीच बेनी भुजा डारे।
मांग म तो सेंदुरा बिराजे, घींच बेनी भुजा डारे।
हाँ .ऽ...जी !पैर म पयरी ललकारे- घींच बेनी.......
पिंडरी म चुरवा ललकारे- घींच....
जांध के जांधिया ललकारे-घींच...
कनिया म लहंगा ललकारे- घींच...
छाती के चोलिया ललकारे- घींच...
गला म सुतली ललकारे - घींच.....
नाक म नथुनी ललकारे --घींच...
मांग के मटोला ललकारे- घींच...

नायिका के नख सिख सिंगार के बरनन-

ए मेर कोनों रोके छेंके के गोठ नई हे। मांदर बाले चेलिक मन मस्ती म गाना बजाना सुरू करिन, अतके म नवा खिले फूल सही हाँसत मुस्कियावत नचकरिहिन ह  सोरह सिंगार करके आ गय,  बांह म करिया नागिन सहि बेनी ला ओरमाये मांग म सेंदूर,पांव म पयरी,ओकर ऊपर कांसा के चुरवा,जांघ ऊपर निचट कसाये जांघिया,चोली म कसाये जोबन, गला म चाँदी के सुतली,नाक म नथुनी,मांग म मांग टीका पहिरे अखरा म पंाव धरते एक पइत माँदर घलो थम गय। ओकर सुधरई अउ बनठना ला देख के जम्मों झिन के आँखी ओकरे डहर जाके वापस आये के रद्दा भुला गय। ओकर जम्मों गहना गांठी मन ललकार- ललकार के रसियामन ला अपन डहर चेत करे के नेवता देवत हे। ( ये गीत म रीतिकाल सहि नायिका के नख सिख सिंगार के बरनन होय हे।)

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत करमा अपन मन के गोठ-

आन सहर के रहइया सो मया फंस जाथे, भेंट करे बर दूरिहा  ले चल के आवत हे करमा गीत के सहारा ले के कइसे अपन मन के गोठ ला अपन मयारुक मेर कइथें देखौ ये गीत म—

हाय रे....ऽ...... ..ऽ ! मया म आयेंव राम,
तोर बलाये नई आयेंव मया म आयेंव राम ।
करिया तो भंटा पतेल पानी,
मैं तो मंडला के रहइया ले लेहू बानी।
चाँदी के मुंदरी अठ्ठनी भर ठीक,
 जिन्दगानी ला निभावै तभे तो जानव ठीक
गयेंन जंगलवा , टोरेन फूल पान हो टोरेन फूल पान,
 तोला नई आवय करमा झन तो देते परान।

एहू गीत म बड़ सुघ्घर गोठ बात होय हे , मोटियारी अउ चेलिक  एक दूसर ला चिढ़ा के खुस होथें अउ गीत सुनइया ला बड़ आनंद मिलथे— मयारुक अपन मया ला परगट करत कहिथे- में मंडला के रहइया तोर मया म अइसे फंसेंव के आये बिन रही नइ  सकेंव, तंय बला के झन बला तोर पिरीत ह मोला इहाँ झींक के ले अइस।  अब आ गय हौं त तोर मया के बचन ले केही जांह।  मोटियारी कइथे — जइसे चाँदी के मुंदरी अठन्नी भर बने रइथे वइसनेच जिन्गी भर निभ जाय तिसना मया बने रइथे, कहे मतलब हे कि तंय ह पहिली जिन्दगी भर संग देहे के वादा कर त मंय ह अपन मया के मोटरी खोलहूँ । ओकर चतुरई ला देख के चेलिक ह अपन मयारुक ला चिढ़ावत कहिथे–जंगल म जाके फूल पान टोड़े सहि सहज नो हे करमा नाचना, तोला नाचे ला नई आवय त काबर जीव देवत हस ? पहिली कोनो गुरू लंग सीख ले त नाचे आबे।

अइसने च प्रयोग ले करमा गीत म परेमरस के धार बोहावत रइथे।

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत करमा म परेमरस के धार बोहावत रइथे-

मयारुक मन के जीव अपन संगी संग भेंट करे बर हर दम बियाकुल रइथे। चेलिक तो हिम्मत करके अपन बात ला कई देथे फेर मोटियारी लाज सरम के लहंगा पहिरे अपन मन के बात कई नई सके, ओकर कलपना ला ओही ह तो जानही। जीव नइ मानय त अवड़ बल करके अपन मयारुक ला अपन घर आये के नेवता देथे —

हाय रे हाय रे....ऽ...... ..ऽ मन बोधना, चले आबे हमार अंगना मन बोधना ।
तूंहरे अंगना म छपक छिया पानी , पानी उलिची चले आबे,
तूंहरे अंगना म कराही कुकुर ठाढ़े ,
कराही कुकुर ला सकरी म बांधे चले आबे।

मन बोधना आज हमर आंगना डहर आ जाह  मंय ह तूंहर रद्दा अगोरहूँ, ओकर बात सुन के ओला चिटकावत चेलिक कइथे के तूंहर अंगना म तो पानी भराय हे आहूँ त छपक छिया के आवाज ला सुन के अउ कोनो जाग जाही त मोर का हाल होही? मोटियारी कइथे- ’’त का होइस पानी ला उलीच के आ जाह। ’’

             फेर चेलिक कइथे- ’’तभो तो नी बनय तुहरं अंगना म कटखना कुकुर हावयं भूँकत-भूँकत काटेला दउरहीं त सबो झन जाग जाहीं, मोर तो मरना हो जाही । ’’

मोटियारी कइथे–’’ अर्रा के सन्सो करथ कुकुर ला पुचकार के सँकरी म बांघ देऽ.ह तिहाँ आ जाह हमार सो भेट करे।’’ ये गीत म मयारुक मन के बीच होय वाले हाँसी ठट्ठा के बड़ सुघ्धर चित्र देखे बर मिलथे, पढ़इया सुनइया मन के मन ह मया म सराबोर होय बिना नई रही सकै।

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत करमा म संयोग सिंगार के मनमोहक बरनन-

एक अउ करमा गीत करमा नाचा म बड़ गाये जाथे, एमऽ मयारुक  सो भेंट करे के बड़ सुघ्घर बहाना हे, संयोग सिंगार के मनमोहक बरनन होय हे। गीत का, ये रस के धार बोहाय वाले कोनो नदी सहि लागत हे….

‘’हाँ ---हाँ रे....ऽ...... ..ऽ! रतन बोइरी तरी रे,
गड़े हे मैनहरि काँटा, रतन बोइरी तरी रे।
ओही म ले नाहकय डिंडवा रे छेलवा,
हेर देबे मैनहरि काँटारतन बोइरी तरी रे।
काँटा हेरउनी का भूती देबे,
 हेर देहूँ काँटा रतन बोइरी तरी रे।
ले लेबे भइया तंय थारी भर रुपया।
हेर देबे  मैनहरि काँटा रतन बोइरी तरी रे।
थारी भर रुपया तोरे घरे भावै रतन बोइरी तरी रे।
ले लेबे भइया लहुरी ननदिया ,
हेर देबे भइया मैनहरि काँटा रतन बोइरी तरी रे।
लहुरी ननदिया तोरे घरे भावै,
नई हेरवं मैनहरि काटाँ रतन बोइरी तरी रे।
ले लेबे छेलवा मोरे रस बुंदिया ,
हेर देबे मैनहरि काँटा रतन बोइरी तरी रे।

ऊपर लिखाये करमा गीत मा मयारुक से मिले के बहाना खोजत मोटियारी घर ले निकलथे ,फेर लाज के मारे अपन संगी ला बला नई सकत रहै त पांव म काँटा गड़े के बहाना म किल्ली पार के बइठ गय, ओकर सो भेंट करे के ताक म लुकाय चेलिक तुरंत सामने आ गय। बियोग के काँटा ह पांव के काँटा ले जियादा च पिरात रहिस तभो ले नारी परानी के गहना ओकर सरम, मन के बात ला ओठ तक आन नई देत रहै त एक ठी जुगत निकालिस अउ चेलिक सो निवेदन करे लागिस–’’ मोर पांव म काँटा गड़ गय हे भाई हेर देते ग!’’

’’ हेर तो देंह ऽ. फेर मोला बनी का मिलही?’’

’’ तैं काँटा तो हेर! थारी भर रुपया देहूँ तोला, परेम के पीरा म बियाकुल मोटियारी जल्दी से जल्दी अपन मयारुक के संग साथ पाना चाहत हे।

’’ थारी भर रुपया तोरे घर के सोभा हे, में नी हेरवं काँटा खुँटी।’’ मयारुक ओकर तड़प ला अउ बढ़ावत ओकर मुँह ले समरपन के प्रस्ताव सुनना चाहत रहिस , तेखरे ले निर्दयी सही गोठियात रहिस।

’’ ले तो अपन लहुरी ननद सो तोर भेट करा देहूँ, काँटा के पीरा नई सहावत हे जल्दी से हेर दे भाई! ’’ओहर बिनती करे लागिस फेर ओकर चुहल ला जान के मयारुक अपन आप ला काबू म राख के अँटियावत बोलिस—’’ तोर लहुरी ननदिया तोरे घर के फभित हे मोला ओकर से का काम हे भइगेय नी हेरवँ काँटा ।’’

एकर बाद अपन लाचारी देखावत मोटियारी अपन अउ ओकर मन के बात ला कइथे-’’ में तोला अपन मया देहूँ, अब अउ काय लेबे जल्दी से काँटा ला हेर!’’ ओकर गोठ ला सुनते चेलिक ओकर काँटा हेरे लगथे।

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत करमा मा रीतिकालिन बिम्‍ब-

ये कबि मन के अति मयारुक बिंब रचना हे रीतिकालीन कबि मन एकर एक से अधिक ठउर म प्रयोग करे हें । सिनेमा म भी कई पइत देखे ला मिल जाथे फेर वनांचल म बिन पढ़े लिखे करमा गीत के रचयिता ह कइसे अतेक सुघ्धर रचना कर डारिस बड़ अचरज के बात हे।

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत करमा म  परिवारिक अनुसासन-

करमा गीत मन म  परिवारिक अनुसासन के भी चरचा होथे काबर के कोनो परेम ला फरे फूले बर परवार तो जरुरी च हे नऽ । संगवारी  संग पाँच परगरट म बिहाव करके जीवन साथी वन के परवार अउ समाज के परंपरा ला आगू बढ़ावत जम्मों जुम्मेदारी ला निबाहत सबो के मान मरजाद ला राखत सुघ्धर जिनगी के रद्दा रेंगे लगथें। बर बिहाव म नोनी पिला अपन ससरार जाके अपन दूनो कुल के मान ला राखथे । नावा बहुरिया ला सास पानी लाये ला जोंग दिस , अझि ससरार के रद्दा देखे नई ये कति का हे कति का हे जानय नहीं —-

‘’ हाय रे हाय!
मैं तो नई जानौं जी, कहाँ बोहावय जाम झरिया।
घर ले निकरे फरिका मेर ठाढ़े,कहाँ बोहावय जाम झरिया,
डोंगरी च डोंगरी तैं चढ़ी जाबे,नीचे बोहावे जाम झरिया।
एक कोस रेंगे दूसर कोस रेंगे तीसर म पहुँचे जाम झरिया।
 हाथे म गगरी मूड़े म गुड़री,खड़े देखय जाम झरिया।

        घर ले निकल के दुआरी म ठाड़ हो गय, कोन जनि कति हे दई  जामझरिया नदी? रद्दा रेंगइया परोसिन मेर पूछिस त ओह बतइस के ओदे छोटे- छोटे डोंगरी मन ला नाहकबे तिहाँ ओकर नीचू म बोहावत हे जाम झरिया नदी। अब रेगिस , एक कोस नहकिस दूसर कोस नहकिस,तीसर कोस म जाम झरिया नदी ला भेंट डारिस । नदी म बने भँवर अउ लहरा उठत रहै , हाथ गगरी अउ मूड़ ऊपर गुड़री धरे ठाड़ रइगे, तीर म जाके डर म पानी भरे नई सकिस । ये गीत म नावा दुलही डउकी के बड़ सटीक चित्रन होय हे, एकर संगे संग आदिवासी जीवन के कठिनाई भी समझे जा सकत हे । पीये के पानी के अतेक दुकाल के बरसातो म दू पहाड़ चघ के नदिया पार जाय ला परथे, महिला मन कतेक करमइतिन होथे एहू देखे के लइक हे। काल के आये नावा बहुरिया अकेला पानी आने जाथे अउ बड़ मयारुक दुल्हा डउका कोनो मेर मंद पी के बिहाव के खुसी मनावत हे। ये ह एकदम सही बात हे के आदिवासी समाज म महिला मन ही घर बाहिर दून्नों ला समोखथें।

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत करमा परेम के एक बड़ जोर लगहा रुप-

परेम के एक बड़ जोर लगहा रुप ला जनावत एक ठि करमा गीत मोला अघात बने लागथे, एम आदिवासी महिला के जीवन मऽ. मिले नानकन आजादी के पलछिन के हल्का सा देखउक पाये जाथे–

‘’ नदिया भौना मा रे ...ऽ।
कइसे नहकाबे नदी पार रे, नदिया भौना मा रे...ऽ।
आज के रतिया रही बसी लेबे,
 कालि नकाबो पार रे...ऽ नदिया ......
दिने खवाहूँ खंड़ा मछरिया
राते ओढा़हूँ भँवर जाल रे...ऽ नदिया .....
रहे ला रहितेंव तोरे टेपरिया,
 कोरा के बलकवा के खियाल रे...ऽ।नदिया भैाना मा रे......ऽ

जंगल पार करत साँझ हो गय,  नदिया के ओ पार ओकर गाँव हे, बरसात के कारन नदिया म भँवर उठथे, नायिका केंवट मेर कइथे — ’’नदी म तो भँवर उठत हे  तंय मोला पार कइसे अमराबे तेला बता। ’’

 ‘’अतका बेर नदी म नाव ले जाये म खतरा हे, आज रथिया मोर झोपड़ी म बितावा ,काली पार अमरा देहँ।’’ केवट अपन बेवस्ता ला गोठियाथे।

‘’ ले तोर कहे म रई च जाहँ त ए मेर मोला काय खवाबे कति सुताबे तेला बता।’’

  ‘’ दिन म मछरी खवाहूँ अउ रात कन मछरी मारे के जाल ला ओढ़ाहूँ।’’ ओकर मयारूक गोठ ला सुन के ओकर मन हो जाथे राता बासा करे के फेर कोरा के लइका के सूरता करके कइथे – दूध पिअइया मोर लइका घर म रोवत होही केंवट, मय रुके नहीं सकवं कइसनो करके मोला पार उतार दे।

ये गीत म अपन सुख के बिचार ह हार जाथे अउ दाई के अपन लइका बर मया जीत जाथे । अपन जान ला खतरा म डार के नायिका भरे नदिया ला पार करे के हिम्मत करथे। आदिवासी मन के जीवन के कठिनाई ला देखे जा सकत हे, नदी पार करे बर कोनो पुल नहीं , सड़क नहीं, पानी बिजली नहीं, नदिया ला नाव म पार करौ, बाढ़ हे त अगोरत रह।

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत करमा म जीवन के हर पक्छ के झलक मिल जाथे-

अइसनेच हजारों गीत आदिवासी समाज म अपन जघा बना के राखे हें जेन म उनकर जीवन के हर पक्छ के झलक मिल जाथे। करमा गीत उनकर संस्कृति के धरोहर आयं जेन ला ओमन बड़ जतन ले सकेल के राखथें। इनकर जीवन म अउ कोनो सुख भले न होय परेम  के कमी नई हे, परेम के अधिकता के कारन एमन सदा अनंद म रइथें। ककरो महल अटारी मोटर गाड़ी ले उनला कोनो मतलब नई हे। एमन के संतोष रूपी धन ला हमू मन ला अपन जीवन म जधा देना चाही।

-श्रीमती तुलसी तिवारी
बी/28 हर सिगार सरस्वती सिसु मंदिर लंग
राजकिसोर नगर बिलासपुर छत्तीगढ़ मो. 9907176361
 

आलेखकार के परिचय-

श्रीमती तुलसी देवी तिवारी का परिचय-

छत्तीसगढ़ी लोकगीत करमा
छत्तीसगढ़ी लोकगीत करमा
नामश्रीमती तुलसी देवी तिवारी
जन्‍म16 मार्च 1954, ग्राम कोट जिला-बलिया उत्‍तरप्रदेश
प्रकाशित पुस्‍तकें- कहानी संग्रह: हिन्‍दीपिंजरा, सदर दरवाजा, परत-दर-परत, आखिर कब तक, राज लक्ष्‍मी, भाग गया मधुकर, शाम के पहले की स्‍याह, इंतजार एक औरत का,
कहानी संग्रह:-छत्‍तीसगढ़ीकेजा, रैनबसेरा
उपन्‍यासकमला (एक संघर्षषील स्त्री की गाथा)
यात्रा संस्‍मरणसुख के पल, ‘ज्‍वार का पानी, नाचेजीनगानी’ जगन्‍ननाथ की पुकार, ‘पत्‍थरों गीत, जीवन के मीत’,
बाल साहित्‍यराजकुमर भरत, राजलक्ष्‍मी
सम्‍मान1. छत्तीसगढ़ी राजभाषा सम्मान, 2. न्यू ऋतम्भरा कबीर सम्मान, 3. राज्यपाल      शिक्षक सम्मान, 4. छत्तीसगढ़ रत्न-2013, 5. राष्ट्रपति पुरस्कार-2013., 6.हिन्दी भाषा भूषण की मानद उपाधी नाथद्वारा राजस्थान, 7.पत्रिका सम्मान,बिलासपुर पत्रिका समूह, 8.लायन्स क्लब गोल्ड बिलासपुर  द्वारा ’ लायंस गोल्ड शिक्षक सम्मान,  9. राजकिशोर नगर समन्वय समिति बिलासपुर द्वारा सम्मान पत्र, 10.रउताही नृत्यकला परिषद देवरहट बिलासपुर द्वारा सम्मान पत्र  11. कान्यकुब्ज ब्राह्मण समाज बिलासपुर द्वारा सम्मान. 12.संदर्भ साहित्य समिति बिलासपुर द्वारा सम्मान, 13. महर्षि विद्यामंदिर बिलासपुर द्वारा सम्मान, 14.श्रद्धा महिला मंडल एस.ई सी. एल, बिलासपुर द्वारा सम्मान । शताधिक प्रमाण-पत्र, राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय
संपर्कमोबा. 9907176361
ई-मेल : tulsi1954march@gmail.com

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3 thoughts on “छत्तीसगढ़ी लोकगीत करमा- श्रीमती तुलसी तिवारी

  1. सुग्घर जानकारी।लेखिका ल हार्दिक बधाई।

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