सत्‍यधर बांधे ‘ईमान’ की 5 कवितायें

सत्‍यधर बांधे 'ईमान' की 5 कवितायें
सत्‍यधर बांधे ‘ईमान’ की 5 कवितायें

सत्‍यधर बांधे ‘ईमान’ की 5 कवितायें

कविता-मटमैले रिश्ते

उजले, धुंधले, कुछ मटमैले,
रिश्ते भी कैसे-कैसे होते हैं।
कुछ रिश्ते तो हम को ढोते,
कुछ रिश्तों को हम भी ढोते हैं।

पवित्र-पावन रिश्तों पर भी,
चढ़ी धूल की मोटी चादर है।
चंद लम्हों का साथ मिले तो,
स्नेह का छलकता गागर है।

स्वार्थ में डूबकर रिश्ते-नाते,
दंगल का आज अखाड़ा है।
देखों कैसे अपनो को यहाँ,
किसी अपने ने ही पछाड़ा है।

मुहँ में राम बगल में छुरी,
कहे शुभचिंतकों से कैसी दूरी।
ताक रहा वही बनकर गिद्ध,
मृग से कोई निकाले कस्तूरी।

मानव है तो मानव ही रहना,
मान ले भाई दिल का कहना।
पशु नहीं जो बस अपना देखे,
रिश्ते ही है मानव का गहना।



कविता- हमने तो पैसों को यहाँ, खुद पे पंख उगाते देखा है

पैदल चल कर आते हुए,
फिर उड़ कर जाते देखा है।
हम ने तो पैसों को यहाँ,
खुद पे पंख उगाते देखा है।

जीवन भर है मारा मारी,
कभी नगद तो कभी उधारी।
चाहत में इसके जन-जन को,
खूब पसीने बहाते देखा है।
हम ने तो पैसों को यहाँ,
खुद पे पंख उगाते देखा है।

तू-तू मैं-मैं यही कराता,
गैरों को भी गले लगाता।
छल-कपट को हावी होकर,
सच का गला दबाते देखा है।
हम ने तो पैसों को यहाँ,
खुद पे पंख उगाते देखा है।

बूंद-बूंद को कोई तरसे,
कहीं-कहीं पे सावन बरसे।
भूखा-प्यासा बैठा कोई,
कितनों को नदी बहाते देखा है।
हम ने तो पैसों को यहाँ,
खुद पे पंख उगाते देखा है।

ईमान धर्म सब पैसा है,
कुछ का तो रब पैसा है।
पैसे को ही कुछ पाखंडी को,
भगवान बनाते देखा है।
हम ने तो पैसों को यहाँ,
खुद पे पंख उगाते देखा है।

पैसे हो तो सब कुछ अच्छे,
झूठे लोग भी लगते सच्चे।
बिन पैसों के दर-दर हम नें,
खुद को ठोकर खाते देखा है।
हम ने तो पैसों को यहाँ,
खुद पे पंख उगाते देखा है।

अपने पराए खुब भाँते,
बढ़ कर हमको गले लगाते।
पैसों से ही तो तारीफों का,
ऊंचा महल बनाते देखा है।
हम ने तो पैसों को यहाँ,
खुद पे पंख उगाते देखा है 

दोहे-

कोरोना का खौफ़ है, देखो चारों ओर।
सांझ सरीखे लग रहा, उजला-उजला भोर।1

सूनी पनघट कह रही, वृंदावन का हाल।
नाविक खाली हैं पड़े, पंडे हैं बेहाल।2

पावन नदियाँ बह रही, धोने सब के पाप।
रस्ता रोके है खड़ा, कोरोना अभिशाप।3

गंगा जल से मिट रहा, लाखों विषाणु आज।
हम भारत के लाल को, गंगा पर है नाज।4

मिट जायेगा रोग भी, होगी चिंता दूर।
सब रहें सावधान तो, कोरोना मजबूर।5

कुण्‍डलियां-

रावण का भी मिट गया, जग से तो अभिमान।
चल नेकी के राह पे, भला बना इंसान।।
भला बना इंसान, छोड़ कर अंहकार को।
जग में करते नाम, धरते जो सतकार को।।
चलो लगाएं जोर, सब कुछ लगे मनभावन।
आगे बढ़ कर मार, उठे जो मन का रावण।।


हाइकु-

बिना संस्कार
जीवन है बेकार
बडे़ लाचार

किसका डर
सताए घर-घर
दुखते सर

पशु की भांति
जीवन का सफर
उगते पर

घुटते दम
बिखरते संस्कार
पीड़ा अपार

चलो समेटे
बिखरते संस्कार
सुख का द्वार


-सत्‍यधर बांधे 'ईमान'

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