मेरी नई कविताएं
-रमेश चौहान
चिंता और चिंतन
अनसुनी बातें
सुनता रहा मैं
अनकही बातें
कहता रहा मैं
अनदेखी
दृश्य को देखकर ।
विचारों की तंतु
मन विबर की लार्वा से
तनता जा रहा था
उलझता-सुलझता हुआ
मन को हृदय की
गहराई में देखकर ।।
चिंता और चिंतन
गाहे-बगाहे साथ हो चले
नैतिकता का दर्पण में
अंकित छवि को देखकर ।।
अंधभक्त और चम्मच
अंधभक्त अंधा नहीं, चम्मच नहीं निर्जीव
दो पाटन के बीच में पीस रहा,
पुरातन का पहचान
चम्मच को एक थाली से मतलब,
केवल खुद बर गुमान
भक्त कंकड़ पत्थर को मान रहा है शिव
चम्मच का शोर करना, है आंतरिक स्वभाव
श्रद्धा में गोता खा रहे, भक्ति का निज भाव
रस्साकसी के खेल में हिले देश का नींव
आस्था
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे का
संत फकीर गुरु
पैगंबर ईश्वर का
अस्तित्व है
केवल मेरी मान्यता से
जिससे जन्मी है
मेरी आस्था ।
मेरी आस्था
किसी अन्य की आस्था से
कमतर नहीं है
न हीं उनकी आस्था
मेरी आस्था से कमतर है
फिर भी लोग क्यों
दूसरों की आस्था पर चोट पहुंचाकर
खुद को बुद्धिजीवी कहते हैं ।
मुझे अंधविश्वासी कहने वाले खुद
पर झांक कर देखें
कितने अंधविश्वास में स्वयं जीते हैं ।
-रमेश चौहान